कालातीत: स्मिता सिन्हा

तुम्हारी कविताओं में
सिर्फ़ सूखे हुए दरख्तों की बात थी
जबकि यह उनपर नये पत्तों के आने के दिन थे
बात थी तो सिर्फ़ उस प्यासे अंबर की
जबकि यह उसके तुष्ट होकर खूब खूब बरसने के दिन थे

मुझे इस बात का प्रयोजन कभी समझ नहीं आता कि
तुम्हारा हर एक शब्द
अपने सभी अर्थों में विलोम ही क्यों रहा ! !

अब तुम यह न कहना कि
दुःख की गठरी में
निकृष्ट सा पड़ा सुख
सबसे अधिक बंजर होता है

जबकि मैंने हर एक रिक्ति को
अपनी तमाम विषमताओं को भेद कर
पार जाने की चाह में
उन्मुक्त ही देखा है हमेशा…

स्मिता सिन्हा