कोई जुगनू: रकमिश सुल्तानपुरी

दर्द के शहर में इक घर तलाश लेता हूँ
रातों को ख़्वाब का बिस्तर तलाश लेता हूँ

इश्क़ में एकतरफ़ा यार जब हुआ तन्हा,
मैं मेरे दर्द का सागर तलाश लेता हूँ

इश्क़ बरपे ज़ेहन में तो जफ़ा-जफ़ा कैसी,
न मिले फूल तो ख़ंजर तलाश लेता हूँ

लाख दुनिया मुझे पिंजर में बाँध कर रख्खे,
बनके जुगनू कोई अम्बर तलाश लेता हूँ

बंदिशें इश्क़ पे कितनी भी डाल दे दुनिया,
रास्ता इश्क़ का दीग़र तलाश लेता हूँ

उनकी यादें कभी जब लौट के चली आएं
उनकी  तस्वीर सा पत्थर तलाश लेता हूँ

दर्द रकमिश कभी जब ज़ीस्त की दवा निकला,
अपने जैसा कोई पैकर तलाश लेता हूँ

रकमिश सुल्तानपुरी