प्रकृति, जो है अपने नाम में ही है परिपूर्ण
सुख, प्रेम, दया, छाया, संतृप्ति है जिसके गुण
परोपकार है जिसके संस्कार,
लेती नहीं किसी के उपकार
सेवा ही प्रदान करती हैं कभी जननी,
तो कभी संरक्षक बनकर
माँ की ही छवि है इनमें,
केवल देने का भाव रखती हैं
लाख कष्ट देते हैं संतान,
फिर भी सेवाभाव से पीछे हटती नहीं हैं
प्रकृति ने दिखाया हमेशा हम पर प्यार,
अब हमारी बारी है चलो हम भी करें
प्रकृति से प्यार
-निधि तिवारी
मुम्बई, महाराष्ट्र