खो सा गया हूँ
इस जहां में कहीं,
रूह भी अपना आधार
खोज रही है,
कह रही है,आ सुन तो सही
कहाँ गया मेरा अस्तित्व?
जो जन्मा था तेरे संग,
कुछ तंग-तंग रह कर
हो गया खोखला-सा,
बढ़ रहा था रुक गया
जैसे ठोकर खाया पत्थर,
बैठ मत मायूस बनकर
पकड़ जकड़ अपनी जड़ों को,
जो सूख कर झड़ने वाली हैं
कर दे रोशन
इस तरह इसे भी फिर से,
टूटता तारा जैसे चमकता
है अस्तित्त्व खो देने से पहले
देख उन डाली के खोखले
पत्तों को, जो मौसम बदलते
चमका देते हैं सुबह को,
मनन के भीतर की कली
को कमल बनने तो दे,
जड़ों को राह दे
ज़मीन की गहराई नापने का
बीज से कली बन
कली से फूल,
छोड़ काला साया अपना
देख आइने की ओर
बुनियाद तेरी अपनी होगी
उज्ज्वल होगा तेरा अस्तित्त्व
-पूजा पनेसर
लुधियाना, पंजाब, भारत