सागर के आलिंगन में ही
खुद को सौंप देती सरिता
सागर बिन व्याकुल है रहती
कतरा-कतरा होती सरिता
स्वच्छंद जल सा मन उसका
अविरत बहती रहती सरिता
ताउम्र सागर की ही है
रोम-रोम में बसती सरिता
सादगी की है वो मूरत
जिसको नज़्र करती कविता
-अतुल पाठक
हाथरस, उत्तर प्रदेश
संपर्क- 7253099710