उस दिन जब मैं उपेक्षित हुआ करता था
आज जब तोहफों की बौछार होती है
कितना फर्क है उस कल में और इस आज में
मेरे अपने भी नाक भौंह सिकोड़ते थे
त्योरियां चढ़ जाती थी उनकी
लेकिन आज देखते ही बिफर उठते है
गले मिलते है, थपकियाँ देते है
कितना फर्क है उस रंज में और इस नाज़ में
-अरुण कुमार नोनहर
बिक्रमगंज, रोहतास
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