आँसू बहाता रहा और अँगूठा चलता रहा
कुछ यूँ उसके प्यार का सूरज ढलता रहा
जाम छलकती रही सावन में घर के अंदर
बिन छत का ग़रीब बारिश में गलता रहा
लोगों ने कह दिया साँवले हो तुम बहुत
ता’उम्र वह चेहरे की क्रीम बदलता रहा
कूल लगता है बहुत उसे गालियाँ देना
टोकने पर ज़ुबाँ उसका फिसलता रहा
उल्फ़त न रास आयी जिसको बेटी की
तरक़्कीपसंद कह ख़ुद को छलता रहा
इक घूँट पिया था बचपन मे नफ़रत का
सारी ज़िन्दगी वह ज़हर उगलता रहा
यह वक़्त था गुजर गया पलक झपकते
तारांश खड़ा इंतज़ार में हाथ मलता रहा
-सूरज रंजन तारांश