युद्ध: वंदना सहाय

वंदना सहाय

न बहुत पढ़ी-लिखी
न बिल्कुल अनपढ़
घर के कामकाज को निपटा
देखती है टीवी पर दिखाए जा रहे समाचारों को
बहुत ज्यादा समझ नहीं है उसे
राजनीति की या फिर विश्वस्तरीय
समाचारों पर टिप्पणी करने की

बस, उसके पास है
उसकी अनुभूति और गहन संवेदना
जब कभी वह देखती है खबर, हो रहे महायुद्ध का
तो सहम उठती है वह
उसकी गहन संवेदना
उसे आशंकित कर देती है
कि कहीं यह महायुद्ध न धर ले रूप
विश्वयुद्ध का
फिर तो जो भी होगा
वह भयावह ही होगा

मारे जाएँगे बेहिसाब बेगुनाह
मौत की आँधियों से बिखर जाएँगे
लाखों परिवार
और मुँह में दूध का तलब लगने से पहले ही
विलग होना पड़ेगा शिशुओं को माँ की छाती से
तोप के गोलों और बंदूक की गोलियों से
हृदय को दहलाने वाला गूंजेगा संगीत
विप्लव करेगा नर्तन
टिड्डी दलों की तरह उड़ते ड्रोन लिखेंगे सर्वनाश का गीत
फिर जब झेलेगी धरती अपने सीने पर बमों का फटना
तो वह हो जाएगी- स्पंदनहीन
तेज डेसीबल की आवाज कर जाएगी
उसके कानों को बधिर
हर ओर पसरेगा मौत का सन्नाटा
और हमारा वर्तमान
अतीत में बदल जाएगा