अंतिम विदाई- शिवम मिश्रा

जब से मिलने को बोला है तब से रो ही रहे हो आंखें सूज गयी है। अब चुप हो जाओ लो रुमाल और एकदम शांत।
अरे बाबा। प्लीज रो मत कोई फायदा नहीं है कब तक रोओगे। आंखों के नीचे काले गढ्ढे तक हो गये हैं, अब बस भी करो, बस और नहीं, वर्तिका ने कहा
आंखें आज तक पत्थर जो बनी हुई थी, आज लगातार बह रही थी। उसे याद आता है वो दिन जब उसके बेस्ट फ्रेंड की मौत हुई थी, ये टकटकी लगा कर उसे देखता ही रहा था। खून से लथपथ अपनी गोद में लाने से लेकर पार्थिव शरीर को जलाने तक, उसकी आंखों में आंसू की एक बुंद ना थी,उसको धक्का लगा था, जिससे आंखें निर्जीव और बेजान बन चुकी थी। हर उस पल को याद कर रहा था जो उन दोनों ने स्कूल से लेकर क्रिकेट के मैदान में बिताया था, फिर भी आंसू नहीं आ पाये। ये सदमा था जो उसे अंदर ही अंदर घोट गया।
आज जब रोना शुरु किया तो, चुप ही नहीं हो रहा था। एक घड़े के फूट जाने पर कितना दर्द बाहर आता है, उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था। हर प्यार करने वाला शख्स उससे दूर हो चुका था, अकेलेपन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था।
पता है जब मैं मरूंगा तो अपनी आंखें दान करूंगा, किसी को रोशनी से जरुर नहलाऊंगा.. आंजिक्य ने कहा।
अरे पागल चुप करो, मेरी शादी में आओगे, ये मरने वरने कि बात नहीं।
देखो सब तारीफ कर रहे है इस कार्ड की तुम बताओ ख़ूबसूरत है ना। बोलो ना, प्लीज बताओ ना, वर्तिका ने कहा।
हाँ कितना अच्छा है ये, मेरी आंखों की तरह लाल लाल आंजिक्य ने कहा।
तुम्हें तो बस शायरी सुझती रहती है, हाँ सुनो पागल मत हो जाना। देखो मैं कितना खुश रहती हूँ और तुम देवदास से…
अपनी हालात तो देखो, ये दाढ़ी क्यों बढ़ा रखी है, गुंडे लगते हो सच में।
जब पहली बार मिले थे तो गोरे चिट्टे क्लीन सेव रहते थे और अब देखो; तुम्हें पता है ज्यादा फिल्में देखने के कारण पूरे फिल्मी हो गए हो। सच्चा प्यार को मुझे भी था तुमसे, पर वक्त गुजरने के साथ परिस्थितीयो को भी बदलना पडता है देखो मैं आगे बढ़ी और तुम भी जल्दी से अच्छी लड़की देखो और बिदांस रहो। वर्तिका ने कहा।
वो सब कुछ इतने हल्के में ले रही थी, जैसै कुछ हुआ ही नहीं। ये उसका हल्कापन आंजिक्य को तलहटी तक कचोट रहा था, रोते-रोते उसकी हर बात को गौर से सुन रहा था।
अब चलो भूलो सब और मूव ऑन- वर्तिका ने कहा।
हाँ सब कुछ भूल गया मैं, आंजिक्य ने कहा।
भूल गया उस पार्क को जो आज मुझे खाने को दौड़ते हैं.. भूल गया वो हर दिन जब तुम्हें तुम्हारे दिन भर के कामो के बारे में पुछता था, भूल गया वो सब बाते जब दिन की 6 घंटे तुम्हारे साथ एकसाथ बिताया था, भूल गया वो दिन जब रोज सुबह तुम्हें मैसैज करके उठाता था, गुड मार्निग के साथ, भूल गया वो वाला दिन जब दोस्तों कि महफिल में रो पडा था।
तुमने सिर्फ इतना कहा था कि मेरे परिवार वाले ना माने तो मैं तुम्हें नहीं अपना सकती।
वो जानता था कि वो उसे प्यार नहीं करती शायद, वो उसे सिर्फ पसंद करती है और पसंद तो रोज बदल जाया करते है!
फिर भी वो रो पड़ा था, किसी आभास की फुसफुसाहट से बैचैन हो गया था।
हाँ हैलो, कहां हो आप, ये रिग बदलनी है मुझे, कितनी टाइट दे दी।
मैं अकेले नहीं जाऊंगी मुझे नहीं पता, बस आओ जल्दी से मैं बडे गेट के पास रिक्शे से आ रही हूं, बस आधा घंटा लगेगा, कॉल करती हूं मैं, हाँ बाबा लव यू, वर्तिका ने अपने होने वाले पति से कहा.
सुनो- मुझे बहुत सारे काम है और ये कार्ड रखो और डेट याद रखना। अब बिल्कुल फुर्सत नहीं होगी मुझे; कॉल नहीं कर पाऊंगी और ये रोना धोना बंद, सब पागलपंती है।
कितनी आसानी से वो सबकुछ हल्का करती जा रही थी। उसके लिए कुछ था ही नहीं। वो आज में जीती है,आधुनिक जमाने की मार्डन है, ये हालीवुड देखती है और मजबूत दिलों पर ज्यादा लेने वालो से कन्नी काटती है ये प्यार उसके लिए व्यार था।
काश! ये आंजिक्य भी सबकुछ हल्के में ले लेता, इन वजनी आंखों को खोलने में किसी की मदद ले लेता। दिल की ना मानकर एक बार इस सुन्न दिमाग की भी सुन लेता।
सुन लेता उस पिता की जो खुद ही बोल पड़े ले कपड़े ले आ,कितने दिन से कुछ नहीं खरीदा तूने,
शायद सुन लेता उस रोती माँ कि जो रोज बोलती थी, शाम का खाना क्यों नहीं खाता, थोडा तो खा लिया कर..
काश! वो सुन लेता इन सब की।
पर ये तो रोजना भयानक सपनों में रहता और रातों में चीख पडता था। फिर एक दिन ऐसा आया जब इस का पागल मन थक गया। ये शायद इसी दिन की प्रतीक्षा में अभी तक अपने आप को घोट रहा था। उस दिन की रात का इंतजार कर रहा था, जिस दिन वो दूसरे के घर में हमेशा के लिए कदम रख रही थी।
सुबह उसकी विदाई हो रही थी, इधर पूरी कॉलोनी में रुदन की चित्कार गुज रही थी। पूरी डिब्बी को एक बार में खत्म कर दिया गया, जिसमें 30 नींद की गोलिया थी।
जब दिल पर बोझ हद से ज्यादा बढ़ा तो गिर गया और ऐसा गिरा की फिर कभी नहीं उठा, चला गया सबको छोड़ कर।
फर्क बस इतना सा था कि किसी कि विदाई थी दूसरे घर में तो किसी की दूसरी दुनिया में..
अब भी उस घर से आंजिक्य की रोने कि आवाज आती है, अब वहा कोई नहीं रहता, बस आंजिक्य रहता है।

-शिवम मिश्रा ‘गोविंद’
मुंबई, महाराष्ट्र