कवि ‘उखाड़-पछाड़’ जी का सपना- राजकुमार धर द्विवेदी

सुबह गरमागरम चाय सुड़कते हुए कवि ‘उखाड़-पछाड़’ जी ने धर्मपत्नी से कहा, ‘मनोरमा, मैंने बीती रात अजीब सपना देखा।’
‘आप तो जब देखो तब सपना ही देखते रहते हैं, कभी अजीब तो कभी हसीन, लेकिन आज तक पूरा नहीं हुआ एक भी अच्छा सपना।’ मनोरमा बोली।
‘मूड खराब न करो। सुनो कि क्या देखा मैंने सपने में।’
‘सुना डालिए।’
कवि जी ने सपना बताना शुरू किया, ‘मनोरमा, मैं सपने में पहुंच गया यमलोक।’
‘अरे!” मनोरमा चौंकी।’
‘हां। वहां यमराज जी सिंहासन पर विराजमान थे। उन्होंने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और सम्मानजनक आसन पर बैठाया।’
‘हा…हा…हा…! अच्छा जी!! उन्होंने हाथ भी मिलाया होगा आपसे, गले भी लगाया होगा आपको, क्यों?’
‘कोरोना वायरस के डर से उन्होंने ऐसा तो नहीं किया, लेकिन मान खूब दिया।’
‘तो यमराज भी कोरोना वायरस से डरते हैं?” मनोरमा ने हंसते हुए पूछा।’
‘डरते ही हैं। बड़े चिंतित दिखे वे। मेरे प्रति तो काफी चिंतित दिखे। कहने लगे- उखाड़-पछाड़ जी, इन दिनों तो कवि-सम्मेलन बंद हैं। कहां दहाड़ते होंगे आप? मोटा लिफाफा भी मिलना बंद हो गया होगा।’
‘तो आपने क्या कहा?’
‘अरे मैं क्या कहता मनोरमा! बोला- यमराज जी, लिफाफे की चिंता ज्यादा नहीं है, लेकिन दहाड़ना बंद हो गया, इसलिए बेहद दुखी हूं। यमराज जी इस पर जोर से हंसे और बोले- कवि जी, घर में बीवी के आगे बड़े-बड़े शूरमा भीगी बिल्ली बने रहते हैं। उनकी बोलती बंद रहती है तो आप किस खेत की मूली हैं? आपकी बोलती तो बंद रहेगी ही। यही सोचकर मैंने आपको दूत से यहां बुलवा लिया कि आप दहाड़ लें, क्योंकि इक्कीस दिन बहुत होते हैं। इन दिनों अगर आपने नहीं दहाड़ा तो आपकी हालत खराब हो जाएगी।’
मनोरमा को काफी मजा आ रहा था। वह बड़े चाव से कवि जी की बातें सुन रही थी। उसने कहा, ‘यमराज जी एकदम सही बोले। आप जब देखो तब मुझे तंग करते रहते हैं कि ये कविता सुनो, वो कविता सुनो। कोरोना के कारण आप घर में क्या कैद हो गए, मेरा जीना हराम कर दिया आपने। वैसे सभी कवि-कवयित्रियों का यही हाल है। उनसे घर में रहा नहीं जा रहा है। मंच, ताली, वाहवाही के बिना कहां चैन मिले? घर में तो कोई घास डालता नहीं। आपकी एक कवयित्री मित्र कल फोन पर कह रही थीं कि इस निगोड़े कोरोना ने बड़ा दुख दे रखा है। एक तो कवि-सम्मेलन बंद होने से अच्छी खासी आमदनी बंद हो गई, दूसरे कोई घर में भाव नहीं देता। यही हाल रहा तो यह कोकिला कूकना ही भूल जाएगी। खैर छोड़िए ये सब, बताइए कि आगे क्या बात हुई यमराज जी से?’
‘वे एक शुभचिंतक की भांति मुझसे बातें करते रहे। उनकी बातें सुनकर मुझे लगा कि एक अच्छा आयोजक फंस गया है, जो यमलोक में मेरे लिए एक बड़ा आयोजन कराकर मुझे निहाल कर देगा। कुछ देर में यमराज जी ने मेरे दिल की बात कह ही दी- कविवर, मेरी बड़ी इच्छा है कि आप यमलोक में दहाड़ें और जिन लोगों ने सांप और चमगादड़ का जूस पीकर कोरोना फैलाया है, उन्हें जमकर कोसें। ऐसे कुछ दुष्टों की आत्माएं यहां हैं। वे आपकी दहाड़ सुनें और शर्मिंदा हों।” कवि जी ने बताया।
‘काफी दिलचस्प सपना है। आगे बताएं।’ मनोरमा ने दिलचस्पी दिखाई।
‘मनोरमा, मैं बेहद खुश हुआ। मैंने फौरन अपने कुछ पत्रकार साथियों से मोबाइल पर बात की और उन्हें खुशखबरी सुनाई। यह भी कहा कि मैं एकमात्र ऐसा कवि हूं, जो यमलोक में काव्य-पाठ करूंगा। इस खबर को मेरी जवानी की तस्वीर के साथ अच्छे से छापिए। यह भी लिखिए कि कुछ कवि दूसरे देशों में एक-दो बार कविता पढ़ आते हैं तो मारे घमंड के चूर रहते हैं। अरे मैं तो यमलोक पहुंच गया।’
‘हा–हा–हा, सही बात! ये तो वाकई बड़ी उपलब्धि! लेकिन कविवर यह तो सपना! आगे बोलिए… कुछ पैसे-वैसे की भी बात हुई कि यमलोक में कविता सुनाने की बात से ही आप फूलकर कुप्पा हो गए?’
‘अरे मनोरमा, यमराज जी से क्या पैसों की बात करता? उन्होंने यमलोक में बुला लिया, यह कम है क्या? पैसों की बात तो यहां करनी पड़ती है। आयोजकों को तेल लगाना पड़ता है। कभी जन्मदिन तो कभी तीज-त्योहार की बधाई देने के बहाने फोन लगाकर याद दिलाना पड़ता है कि भइए, अमुक आयोजन में बुलाना जरूर। यमराज जी ने तो बिना तेल लगवाए ही बुला लिया, लेकिन आयोजक को पटाना बड़ा मुश्किल काम है। जो कवि-कवयित्री पटाने में माहिर हैं, वही चल रहे हैं। इन दिनों भी कोई चैन से नहीं बैठा है। कवि-कवयित्रियां आयोजकों को फोन घनघनाते रहते हैं, कोरोना से बचने की नसीहत देते रहते हैं। मैं भी मनाता हूं कि किसी आयोजक को कोरोना न हो। वह कुशल रहे और जब यह बला खत्म हो तो मुझे भी बुलाए, लाखों श्रोताओं की तालियां और मोटा लिफाफा दे।”
”हां। आगे बताइए कि फिर यमलोक में दहाड़े आप कि नहीं?’
‘अरे मनोरमा, यमराज जी ने कहा- कवि जी, अभी आप जाएं और विश्राम करें। कल रात आपका कार्यक्रम होगा। मुझे एक दूत एक आलीशान कमरे में ले गया। मैं विश्राम करने लगा, तभी सोचा कि तुम्हें खुशखबरी दे दूं। बस उसी समय सब मटियामेट हो गया। निगोड़ी नींद खुल गई। देखा कि मैं अकेले अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ा हूं। तुम इन दिनों कोरोना के कारण डिस्टेंस बनाए हो, वरना रात में ही यह सपना बताता।’
‘हां, लेकिन यह तो बड़ा बुरा हुआ। आप सपने में ही सही, दहाड़ नहीं पाए। जो आदमी दहाड़ने के लिए यमलोक चला जाए, उसकी पीड़ा मुझसे देखी नहीं जाती। ऐसा करिए कि आज आप दहाड़ लीजिए। मैं कुछ नहीं कहूंगी, बल्कि तालियां बजाऊंगी। आइंदा आप कभी यमलोक न जाएं, यहीं दहाड़ते रहें, मोटे लिफाफे लाते रहें। चिंता न करें, हालात बदलेंगे और आप मंचों पर खूब दहाड़ेंगे। बेचैन मत होइए मंच और ताली के लिए!,
पहली बार पत्नी से इतना प्यार पाकर कवि जी फूल कर गुब्बारा हो गए और कोरोना पर लिखी अपनी भारीभरकम कविता दहाड़ने लगे।

-राजकुमार धर द्विवेदी