धर्म-द्वन्द- प्रशांत सेठ

उन्माद मत बनाओ रण का
विषय है ये अंतःकरण का
निज आस्था और प्रण का
धर्म विषय है आचरण का

ना अर्जुन का ना ही कर्ण का
ना जाति का ना ही वर्ण का
धर्म विषय नहीं हार जीत का
ये विषय है निज समर्पण का

मार्ग है मुक्ति के वरण का
और बंधनों के हरण का
जीवन का भी अर्थ यही है
यही तात्पर्य है मरण का

भटके हुए पथिक को जैसे
तरुवर दे विश्वास शरण का
धर्म वही शक्ति है जैसे
बल होता है माँ के चरण का

देखो गौर से देह नश्वर है
त्यागो अहंकार एक ज्वर है
रक्षक होना मिथ्या भ्रम है
मनुज कौन सा यहाँ अमर है?

सुनो भीतर उपजता स्वर है
सनातन सत्य ये अनश्वर है
धर्म सदा रक्षित है क्योंकि
रक्षक उसका स्वयं ईश्वर है

-प्रशांत सेठ