नारी तुम क्या नहीं हो- कुमारी अर्चना

नारी तुम जल सी शीतल हो
नारी तुम ज्वालामुखी सी गरम हो
नारी तुम सागर सी हो
नारी तुम थल सी नरम हो
नारी तुम चट्टान सी कठोर हो
नारी तुम नभ सी उँची उड़ती हो
नारी तुम समीर सी चलती हो
नारी तुम सरिता बन बहती हो
नारी तुम धारा में रहती हो
नारी तुम पर्वत सी स्थिर हो
नारी तुम पहाड़ सी श्रृंखला हो
नारी तुम पेड़ सी छाया देती हो
नारी तू पौधो सी हरियाली लाती
नारी तुम कली से बंद रहती
नारी तुम फूल बन खिलती
नारी तुम बीज से फसल बनती
नारी तुम इतिहास के पन्नों में
नारी तुम भूगोल सी गोल हो
नारी तुम नित ज्ञान देती हो
नारी तुम विज्ञान सी खोज हो
नारी तुम ब्राहाण्ड सी विशाल हो
नारी तुम ही अर्थ में हो
नारी तम देवी सी हो
नारी तुम पृथ्वी सी हो
नारी तुम नर नरायण में हो
नारी तुम आदि शक्ति हो
नारी तुम लक्ष्मी हो
नारी तुम कल्याणी हो
नारी तुम पुत्री हो
नारी तुम प्रेयसी हो
नारी तुम ममतामयी हो
नारी तुम गृस्वामिनी हो!

नारी तुम संस्कारों हो
नारी तुम सत्कर्म हो
नारी तुम धर्म हो
नारी तुम धर्मग्रंथ में
नारी तुम भाग्य विधाता हो
नारी तुम मायामयी हो
नारी तुम दयामयी हो
नारी तुम करूणीय हो
नारी तुम ही मोक्ष हो!

-कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार