मुझे ट्रैकिंग और यात्रा प्रवास करने का बड़ा ही शौक है और इसे पूरा करने के लिए यदा यदा निकल पड़ती हूँ, प्राकृतिक सौन्दर्य मुझे बहुत लुभाता है, इसलिए प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर जगहों को देखना ज्यादा पसंद करती हूँ। इस बार मैंने फूलों की घाटी देखने का मन बनाया। फूलों की घाटी उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यूनेस्को द्वारा फूलों की घाटी को world heritage site (विश्व विरासत) घोषित किया गया है।
फूलों की घाटी पहुँच कर घाटी के अद्भुत सौन्दर्य का पान कर मेरी आंखें चकित हो उठीं। धरा पर जैसे स्वर्ग उतर आया था। घाटी में दूर तक उगते रंग बिरंगे फूल और वनस्पति की छटा को देख मन स्वतः ही गा उठा था। “ये किसने फूल फूल पे किया श्रृंगार है ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार”। देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जनपद स्थित फूलों की घाटी का सौन्दर्य अति मनमोहक है।
कहा जाता है फूलों की घाटी की खोज रूसी यात्री स्मिथ ने की थी। उन दिनों आज की तरह रास्ते नहीं थे। इसलिए स्मिथ अपनी यात्रा के दौरान भारत के अंतिम गांव भारत-तिब्बत की सरहद पर स्थित माना गाँव (माना पास) से रास्ता भूल गये थे और फूलों की घाटी पहुँच गये। जब उन्होंने तरह तरह के फूलों से लहलहाती घाटी को देखा तो उनके मुंह से अनायास ही निकल गया वाॅव! “वैली आफ फ्लावर्स” अहा! फूलों की घाटी।
कहते हैं देवराज इंद्र के जिस नंदन कानन का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है, शायद यह फूलों की घाटी वही नन्दन कानन है। यहां हर साल बिना किसी के बीज ड़ाले ही बिबिध रंगों के फूलों की क्यारियां खुद बखुद सज जाती हैं। हर साल तरह तरह के फूल अलग अलग जगह पर उग आते हैं। है ना! कुदरत का अद्भुत और नायाब करिश्मा। लगभग 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित घाटी में कौन फूल उगाता है।इसे प्रकृति का एक अद्भुत चमत्कार कहिये।
माह जून से अक्तूबर तक यहाँ आप लगभग 250 किस्म के फूल देख सकते हैं। स्मिथ ने अपनी बुक में 500 तरह के फूलों का उल्लेख किया था।
पहाड़ों में घूमने का अपना एक अलग ही एक आनंद है। शांत सौम्य वातावरण, ताजगी भरी शीतल हवा, बर्फ से आच्छादित पहाड़, कल कल बहते झरने सब कुछ इतना मनोरम लगता है कि आप एक अलग ही दुनियां में पहुँच गए हैं। मन ताजगी से भर जाता है ।प्रकृति को नजदीक से देख पाते हैं। प्रकृति संग आत्मसात कर सकते हैं।
अगस्त 2017 में मुझे फूलों की घाटी के सौन्दर्य को निहारने का अवसर मिला। फूलों की घाटी पहुँचनेे के लिए हवाई मार्ग द्वारा अहमदाबाद से देहरादून और देहरादून से सड़क मार्ग द्वारा ऋषिकेश पहुँची। ऋषिकेश में एक दिन एक रात के प्रवास के दौरान गंगा स्नान एवं आरती का आनंद लेकर अगली सुबह तड़के ही सड़क मार्ग से समूह के साथियों संग जोशीमठ के लिए रवाना हुई।
सुबह सूरज निकला और प्रकृति जाग उठी। प्रकाश के आते ही आँखे प्रकृति के सौंदर्य का रसपान करने लगी। सड़क के किनारे कल कल बहती गंगा, पहाड़ी पर बसे इक्के दुक्के घर, सीढ़ी नुमा धान की क्यारियां, यहाँ वहाँ बहते झरने देख मन प्रसन्न हो गया। पंच प्रयाग होते हुए शाम को जोशीमठ पहुँचें। जोशीमठ का पुराना नाम ज्योतिर्मठ है। आदि शंकराचार्य ने यहाँ पांच साल तक तप किया था। यहां विष्णु भगवान का अति प्राचीन मंदिर स्थित हैं। 250 साल पुराना कल्पवृक्ष भी खड़ा है। बद्रीनाथ के जब कपाट बंद हो जाते हैं, तब विष्णु भगवान की पूजा जोशीमठ में ही होती है। जोशीमठ की शाम बहुत ही सुहानी थी, यूथ होस्टल के कर्मचारियों ने वन विभाग के साथ संकलन किया हुआ था। वन विभाग के अधिकारियों ने हमारे द्वारा वृक्षारोपण करवाया।
अगली सुबह बस से गोविंदघाट पहुँचे।यहां किराये पर घोडा लेने के लिए और आगे जाने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया गया। गोविंदघाट से एक रास्ता बद्रीनाथ के लिए और एक रास्ता घघरिया गाँव के लिए जाता है। हमें घघरिया जाना था। घघरिया के लिए पैदल अथवा घोड़े की पीठ पर बैठ कर जाया जा सकता है। हमने लगभग 13 किमी की दूरी घोड़े की पीठ पर बैठ कर तय की। घोड़े पर बैठ कर ऊंचे नीचे रास्तों पर चढ़ने उतरने का अपना ही एक आनंद था। पहाड़ी लोग मेहनती और सीधे सादे होते हैं। घोड़े वाला भैया भी बहुत ही सीधा, सरल और मेहनतकश था। वह बिना थके लगातार घोड़े के साथ ऊंचे नीचे रास्तों पर चढ़ता उतरता रहा। उसका नाम शंकर बिष्ट था। शंकर बिष्ट रास्ते भर बहुत सी बातें करता रहा और बहुत सी स्थानीय जानकारी भी देता रहा। राह में कोई भी सुंदर जगह आती ,वह घोड़े को रोक देता जिससे हम फोटो खींच सकें। रास्ते के किनारे राह में बीच बीच में गंगा बह रही थी। दूसरी ओर अखरोट आड़ू व अंजीर के वृक्ष भी लगे थे। लगभग चार घंटे की यात्रा के बाद हम घघरिया गाँव पहुँच गए। यहाँ होटल के सामने ही हमें घोड़े वाले भैया ने उतार दिया। घघरिया फूलों की घाटी जाने के लिए बेस कैम्प है। यहां से फूलों की घाटी सिर्फ 5’5 किमी दूर है।
शाम को यूथ होस्टल के कर्मियों ने ग्रुप के सदस्यों का परस्पर परिचय कराया, फूलों की घाटी के कुछ रोचक तथ्य, मौसम वनस्पति, घाटी के सौन्दर्य के बारे में और सैर के दौरान रखी जाने वाली सावधानियों पर प्रकाश डाला। भारत के सभी राज्यों से सभी उम्र के पर्यटक आये थे। सबसे परिचय हुआ। वसुधैव कुटुम्बकम का माहौल था। रात सबने साथ खाना खाया और सुबह जल्दी उठने के लिए सो गए।
बरसात का मौसम था। रात को बरसात शुरू हो गई। सुबह तक होती रही। लग रहा था आज सैर पर नहीं जा पायेगें, किंतु पहाड़ी मौसम तो पल में रूप बदलता है। सुबह होते होते बरसात कम हो गई और आसमान साफ हो गया। हम सब फूलों की घाटी के लिए निकल पड़े। बरसाती पहने हाथ में छाता लिए, जूते और स्वेटर से सज्जित बतियाते हुए प्रकृति का आनंद लेते हुए लगभग 1 किमी की दूरी तय करके वन विभाग की चौकी पर पहुँचे।चौकी में रजिस्ट्रेशन करवा कर ही पर्यटक आगे बढ़ सकते हैं। फूलों की घाटी की दूरी यहाँ से 4•5 किमी है। रजिस्ट्रेशन के बाद फोरेस्ट गाईड के साथ हमारा दल आगे बढ़ा। लगभग आधा किमी के मैदानी रास्ते के बाद चढ़ाई शुरू हो गई। हमारे साथ आये फोरेस्ट गार्ड हमें राह में आये विविध फ्लोरा और फोना के बारे में जानकारी दे रहे थे। चौकी से रास्ते के दोनों ओर जंगली गुलाब, पीले सफेद फूल दिखना शुरू हो जाते हैं। रास्ते में ऊंचे ऊंचे चीड़, देवदार और भोजपत्र के वृक्ष शोभायमान थे।(पहले जब कागज नहीं था तब भोजपत्र की छाल पर ही लिखा जाता था) छोटे बड़े झरनों का आनंद लेते हुए हम आगे बढ़ते रहे। राह में पुष्पावती नदी बह रही थी उसके दर्शन हुए।नदी एक विशाल झरने के रूप में नीचे गिरती हुई बहुत तेज कर्णप्रिय नाद उत्पन्न कर रही थी। नदी पर बने ब्रिज से फुहारों का आनंद लिया जा सकता है। फोटोग्राफी के लिए राह में बहुत सुंदर दृश्य हैं। जिन्हें कैमरे में कैद किया जा सकता है। वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य आप को तरोताजा कर देता है। आप राह की थकान भूल जाते हैं। नदी व झरनों का निर्मल पानी पी सकते हैं। उत्तराखंड में हुई अच्छी बरसात के चलते पुष्पावती नदी का प्रवाह इस साल काफी तीव्र गति पर था।
हमारे दल के सभी सदस्य छोटे छोटे दलों में बंट कर बीच बीच में सुस्ताते हुए आगे बढ़ रहे थे। चढ़ाई ज्यादा होने से सांस फूल रही थी। रूक कर विराम लेते हुए, पानी पीते हुए आगे बढ़ रहे थे। लगभग चार घंटे की ट्रैकिंग के बाद आखिर हम फूलों की घाटी पहुँच गए।
वाह! क्या अद्भुत नजारा था, सौन्दर्य से भरपूर, हर तरफ मनमोहक दृश्य। मीलों तक बिछी रंग बिरंगे फूलों की चादर को देख मन प्रफुल्लित हो गया। नीचे बहता पानी, घास के मैदान, ढलान पर उगे देवदार, भोजपत्र और यहाँ ऊपर घाटी में सजे रंग बिरंगे फूल। जैसे एक अद्भुत दुनियां में आ गये थे हम। गार्ड ने फूलों को छूने से मना किया था। उनमें कुछ फूल व वनस्पति ऐसे भी हैं जिन्हें छूकर खुजली होने और मूर्छा आने का खतरा है। गार्ड ने हमें फूलों, विविध वनस्पतियों के बोटेनिकल नाम भी बताये, किंतु इतने सारे फूलों के नाम याद कर पाना संभव नहीं था। मुझे ब्रह्म कमल याद है, ब्लू बैरी की झाड़ियां याद हैं। ताजा ब्लू बैरी तोड़ कर खाने का आनंद याद है।
रास्ते के दोनों ओर मीलों तक किसी किसान ने फूलों की खेती हो जैसे। हम फूलों के साथ साथ बहुत दूर तक चलते रहे। घाटी में बहती शीतलमंद सुगंध पवन और बरसात की फुहारों का आनंद लेते रहे। फोटोग्राफी करते चलते चलते घाटी के अंतिम छोर पर स्थित मेरीकाॅम के स्मृति चिन्ह अर्थात वन विभाग की अंतिम पोस्ट तक पहुंच गये। बरसात फिर शुरू हो गई। यहां रुक कर खूब फोटो खींचे। कहा जाता हैं मैरीकॉम इंग्लैंड से फूलों की घाटी पर रिसर्च करने आई थी। फिसल कर गिरने से उसकी मृत्यु हो गई थी।
घाटी से लौटने का कतई मन नहीं था, किंतु रात को यहाँ ठहरने की इजाजत नहीं है। अंधेरा होने से पहले हमें घघरिया पहुँचना था। अतः दल के सभी सदस्य गपशप करते हुए फोटो खींचते हुए नीचे उतरने लगे। नीचे उतरने में इतनी शक्ति व्यय नहीं होती, जितनी चढ़ाई में होती है। इसलिए जल्दी जल्दी उतरने लगे, लेकिन ढलान होने से फिसलने का भय बना हुआ था। संभल कर कदम रखने पड़ रहे थे।पुष्पावती नदी के निकट रूक कर एक बार फिर फुहारों का आनंद लिया। ठंडा पानी पिया। शाम होने से पहले हम घघरिया लौट आये।
फूलों की घाटी के सफर में नये मित्र बने।उत्तराखंड के जन जीवन को समीप से देखने का मौका मिला। गंगा स्नान का अवसर मिला।राह में पड़ने वाले शहर ऋषिकेश, पंच प्रयाग, (कर्ण प्रयाग, देव प्रयाग, विष्णु प्रयाग, रूद्रप्रयाग, नंदप्रयाग) जोशीमठ, और गोविंदघाट देखने का अवसर मिला। ये यात्रा हमेशा के लिए स्मृति पटल पर अंकित हो गई ।अब जब भी मन करता है, हृदय पटल पर चिन्हित स्मृतियों में फूलों की घाटी की सैर कर लेती हूँ।

-डॉ मीरा रामनिवास