सुनो अब तुम सजन- श्वेता राय

पूछते हो मीत! क्या अनुबंध है?
क्या हमारे बीच में संबंध है?

कह रही जो वो सुनो अब तुम सजन|
दीप पर जलता पतंगा हो मगन||
झर रहे सारे शिशिर में पात जब|
रातरानी से महकती रात तब||
गंध का है फूल से अनुबंध जो|
मीत! अपने बीच है संबंध वो||

बह रही नदियां जलधि की चाह में|
सह रहीं हैं चोट अनगिन राह में||
दूर चंदा घूमता है भर गगन|
सह रही चकई यहाँ मीठी अगन||
बाग उपवन का हवा से बंध जो|
मीत! अपने बीच है संबंध वो||

कूकती कोयल दिलाती याद है|
पिय मिलन की जो करे फरियाद है||
डोलती पुरवा लिए मधु पीर जब|
भेजता अम्बर धरा को नीर तब||
छंद का है गीत से अनुबंध जो|
मीत! अपने बीच है संबंध वो||

अब न पूछो मीत! क्या अनुबंध है?
क्या हमारे बीच में संबंध है?

-श्वेता राय