हमारे देश की नींव हैं मज़दूर- प्रीति चतुर्वेदी



हमारे देश की नींव हैं मज़दूर, जो जा रहे है शहरों से दूर
कर दिया गया जिनका हर सपना चकनाचूर
जिनपर न कोई छाया है और न कोई धूप
बस है तो उनकी लाचारी और बेबसी
जो कर रही है इन्हें मजबूर, अपने घर वापस जाने को
जिनके इरादे है मजबूत, जो नहीं सकते अब टूट

आय का कोई साधन नहीं,
व्यय की सूची घटती नहीं,
दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं
क्योंकि काम है तो अनाज है, जो अब ये मुमकिन नहीं
जिससे घर की व्यवस्था ठीक नहीं
आसान नहीं है परिवार का गुजारा
जो हो गए है अब बेसहारा
पर याद रखें सभी,
हमारे देश की नींव है मज़दूर, जो जा रहे हैैं शहरों से दूर

जिन्होंने किया है शहरों का निर्माण
जिनके बिना नहीं थी प्रगति में उड़ान
जिनके बिना होता देश वीरान
और नहीं होते यहां घर खलिहान
बनाकर पुल मिटा दिए एक दूसरे के दिल के फासले
जिन्होंने किया नि:स्वार्थ सेवा हमारे वास्ते
पर आज आई है विपदा इन पर
जिसका नहीं किया सरकार ने कोई हल
ऐसा निर्मम दृश्य है छाया
जिसके कहर ने पूरी धरती को है समाया
पर याद रखें सभी,
हमारे देश की नींव है मज़दूर, जो जा रहे हैैं शहरों से दूर

सिर पर बोझा उठाए, कर रहे है पैदल सफर
मानों चल रही है, भारत में कोई नई लहर
तय कर रहे है अकेले यह जीवन की यात्रा
याद रहेगा इतिहास में मज़दूरों का यह कारवां
पास पीने को पानी नहीं, खाने को दाना नहीं
पर फिर भी माथे पर कोई शिकन नहीं
किन्तु याद रखो सभी,
हमारे देश की नींव है मज़दूर, जो जा रहे है अब शहरों से दूर

-प्रीति चतुर्वेदी
लुधियाना