धूप और छाँव- गरिमा गौतम

धूप और छाँव में
छिड़ गया विवाद
दोनों में कौन है बड़ा
बस यही सवाल
धूप कहे मैं बड़ी
फसलो को में पकाती
छाँव कहे मैं बड़ी
तुझसे त्रस्त प्राणी
मुझमें पातें तसल्ली
धूप में जलते तन को
मैं ही छाया देती
अतः मैं बड़ी
ठंड में ठिठुरते प्राणी
ताप मुझी से पाते
चराचर जगत में
प्रकाश मुझी से पाते
विवाद बड़ा जब दोनों का
गयी विधाता पास
दोनों में है कौन बड़ा
तुम पर आश्रित आज
दुखी होकर विधाता बोले
एक दूजे पर आश्रित आज
दुखी होकर विधाता बोले
एक दूजे पर आश्रित हो तुम
ना कोई बड़ा ना कोई छोटा
हो समान एक भाव
साथ रहोगी तो उन्नति करोगी
ऊंचाईयों के शिखर तक पहुँचोगी
हल हुआ विवाद दोनों का
ईर्ष्या छोड़ प्रेममयी हुयी
एक दूजे का साथ पाकर
प्राणियों का आधार बनी

-गरिमा राकेश गौतम
कोटा, राजस्थान