जीवन का अवसाद: राजन कुमार झा

निर्मोही दुनियाँ में हमनें,
सब कुछ करके देख लिया
थोड़ा-थोड़ा जी कर देखा,
थोड़ा मर कर देख लिया

हमनें फूलों की क्यारी में,
बीज प्यार के बोये थे
सींच-सींच कर श्रम जल से,
कुछ भावी स्वप्न संजोये थे

किन्तु कटीले शूल चुभे तो’
नयन भिगो कर देख लिया
थोड़ा-थोडा जी कर देखा,
थोड़ा मर कर देख लिया

जिनको हमनें अपना समझा,
सुन्दर जीवन गार दिया
उनकी छोटी-सी चाहत में,
जीवन अपना हार दिया
आज वही कतराते हमसे,
दिल को छूकर देख लिया
थोड़ा-थोडा जी कर देखा,
थोड़ा मर कर देख लिया

रोक रहा था हमें जमाना,
प्राण दिये क्यों फिरता है
दुनियां मतलव की होती है,
पागलपन क्यों करता है
अपने लिए कभी ना सोचा,
खुद को छलकर देख लिया
थोड़ा-थोडा जी कर देखा,
थोड़ा मर कर देख लिया

जुबां बन्द आँखे नम-नम हैं,
जीवन अनकही पहेली है
किसको कौन याद रखता है?
किसकी कौन सहेली है?
शायद कोई मिल जायेगा,
उस पथ चलकर देख लिया
थोड़ा-थोडा जी कर देखा,
थोड़ा मर कर देख लिया

ढोते-ढोते कर्तव्यों को,
जीवन से थक-चूर हुए
जिन्हें सजाकर दिल में रक्खा,
वे जीवन से दूर हुए
जीवन की संध्या आ पंहुची,
हमनें ढलकर देख लिया
थोड़ा-थोडा जी कर देखा,
थोड़ा मर कर देख लिया

निर्मोही दुनियाँ में हमनें,
सब कुछ करके देख लिया
अपनों के खातिर इस जग में,
पागल बनकर देख लिया
थोड़ा-थोडा जी कर देखा,
थोड़ा मर कर देख लिया

राजन कुमार झा
पटना, बिहार
संपर्क- 9523393939