माँ और आग: जसवीर त्यागी

माँ को अँधेरे से सख्त नफरत है
जहाँ कहीं भी उसे वह दिखता है
झट से रोशनी कर देती है

मैंने माँ को अनेक बार
आग के इर्द-गिर्द ही देखा है
सुबह-शाम और देर रात में

माँ भोर में उठ, फूँक मार-मारकर
आग से धुआं हटाती रहती है
उसके आँसू बहुत बार
आग पर झरते रहते हैं

फिर भी वह हार नहीं मानती
और आग जलाकर
सबकी आग शांत करती है

शाम को दिन भर की थकान
उतार फेंकती है आग में

माँ देर रात तक मशाल लिए
सिरहाने बैठी रहती है
हम चैन की नींद सोते रहते हैं

मैं नहीं जानता माँ
तेरा आग से रिश्ता कितना पुराना है?
पर हाँ! इतना ज़रूर जानता हूँ
कि तूने अपनी ज़िंदगी के दमकते दिन
इसी आग में झोंक दिए हैं

कभी- कभी लगता है
कि माँ बावरी हो गयी है
तूझे आग से बिल्कुल भी डर नहीं लगता?

पता नहीं कितनी बार
जला होगा तेरा हाथ इसी आग में

माँ, मैं यह भी जानता हूँ
तू इसी आग को जलाती-जलाती
खुद ही बुझ जायेगी एक दिन

फिर भी तू कभी माँ
यह आग जलाना क्यों नहीं भूलती?

जसवीर त्यागी