प्रेम: रूची शाही

रूची शाही

प्रेम में पड़ा इंसान बहुत जिद्दी होता है
तुम नहीं संभाल पाओगे उसे
तुम बताओगे उसे दिन दुनिया की बातें
समझाओगे बचपना और वयस्कता के बीच अंतर
कभी शायद पोछ भी दो तुम उसके दो चार आंसू
फिर सुनाओगे अपनी मशरूफियत के किस्से
पर क्या कभी लगा पाओगे सीने से
और महसूस कर पाओगे धड़कनों की बेचैनी को
नहीं न, नहीं कर पाओगे ऐसा

प्रेम में इंसान आहत भी बहुत जल्दी हो जाता है
कहां संभाल पाओगे तुम
उसके टूटते बिखरते मन को
तुम्हारे हाथ कापेंगे और जुबान लड़खड़ाएगी
पर सिवाए सांत्वना के कुछ न दे सकोगे तुम
प्रेम में इंसान बच्चे सा हो जाता है
उसे समझाने की नहीं समझने की जरूरत होती है
तुम तो स्वयं चार किताबी बातों में उलझे हो
ज्ञान की बातें समझाना आसान है तुम्हारे लिए
पर उसके माथे को चूमने की हिम्मत नहीं कर पाओगे तुम
सब कुछ समझते हुए भी न समझना
और अज्ञानी बने रहना ही
प्रेम है…