तुम्हें ही सोच रही हूँ मैं: रूची शाही

रूची शाही

ऐसा लग रहा है
जैसे सब कुछ खो गया हो मेरा
बहुत ढूंढ रही पर मिल नहीं रहा
कुछ मिला भी तो
मेरे बेपनाह प्रेम के बदले
कुछ कड़वे शब्द,
कुछ घाव, कुछ कांटे
जो चुभ गए हैं मेरे हृदय के बीचोबीच

सुनो किसी सूरत तुमको
खोने का हौसला नहीं है मुझमें
दर्द की हद पर खड़ी होकर भी
तुम्हें ही सोच रही हूँ मैं
तुम्हारी उपेक्षाओं का विष पीकर भी
तुमसे प्रेम ही तो किया है मैंने

नफरत करना तो सीखा ही नही मैंने
नहीं तो तुम्हारी पहली गलती पर ही
तुमसे दूर हो गयी होती
पर आज दूर होकर सोच रही हूँ
कि किसी रिश्ते से दूर होने का मतलब
नफरत करना कतई नहीं होता
हाँ ये दुख जीवन पर सालेगा मुझे
कि तुम मुझे मेरे हक का
प्रेम देने में भी असमर्थ रहे