रिश्तों में अपनेपन का एहसास- निशांत खुरपाल

एहसास के साथ शुरू होता है रिश्ता
जैसे बारिश के बाद
मिट्टी से सोंधी-सोंधी खुशबू आती है
बिल्कुल वैसी ही खुशबू
कभी हमारे रिश्ते से आया करती थी
वो खिलखिला कर हँसती थी
और उसकी हँसी, मेरे दिल में उतर जाया करती थी

जब भी कभी सर्दी से मेरी नाक लाल हुआ करती थी
वो अपने गरम हाथों से मेरी नाक सहलाया करती थी
कुछ ज्यादा खुशियाँ तो नहीं दे पाया मैं उसे, गरीब जो था
पर वो गरीबी में भी रानियों सा किरदार निभाया करती थी
कस्मों और वादों की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी
जो बातें उसने कभी, कही भी नहीं थी
वो उन्हें भी निभाया करती थी
बोलती बहुत ही कम थी

वो जज्बातों से हर बात समझाया करती थी
रिश्तों में अपनेपन का एहसास ज़रूरी होता है
बिन इसके हर रिश्ता अधूरा होता है
महज़ दौलत और शोहरत ही काफ़ी नहीं जीने के लिए
रिश्ते और अपनों के होने से ही तो इंसान पूरा होता है
एहसास के साथ ही शुरु होता है रिश्ता
एहसासों के ना रहने से, दम तोड़ देता है वही रिश्ता

-निशांत खुरपाल ‘काबिल’
अध्यापक,
कैंब्रिज इंटरनेशनल स्कूल,
पठानकोट