समय उड़ चला- शिप्रा खरे शुक्ला

तुम चल दिए साथ
लेकर अपना समय
कोख़, गोद और पहियों पर
घसीटते और कढिलाते
तुम्हारे ज़हन में थी सिर्फ
साल भर दो जून की रोटी
तुम इससे फारिग कहांँ
और किसी को फुरसत कहांँ
फ़िर कौन सोचे तुम्हारा हाल
पर तुमने क्यों नहीं सोचा
कि समय तयशुदा है
वह तभी चलेगा
जब उसको चलना होगा
वह तभी रुकेगा
जब उसको रुकना होगा
घसिटने और कढिलने की
उसकी आदत कहांँ
सो वह उड़ चला
और उसे जाता देख
बिलखी केवल मांँओं की गोदें
और साकित खड़ा रहा सारा जहांँ

-शिप्रा खरे शुक्ला
शैक्षणिक परामर्शदाता
गोला गोकरणनाथ, खीरी