तुम्हारे प्रेम में: रूची शाही

तुम्हारे प्रेम में, बस मैं ही नहीं
मेरी कुछ कविताएं भी उदास सी रहने लगी
ये कविताएं शुरुआती पन्नों को छोड़कर
बीचों बीच एकांत में लिखीं गयीं
जैसे डायरी के हृदय पे अंकित हों
मानो कुछ उदास शब्दों की अभिव्यक्ति
जिनमें तुम्हारे वियोग को
सहन करने की कोई अद्भुत शक्ति हो

इनकी उदासी बहुत गहरी थी
कि जैसे शब्द शब्द मूर्छा में पड़े हों
और जीवन और मृत्यु के बीच अटके
अपने भावों के लिए संबोधन ढूंढ रहें हों
शायद तुम पुकार लो इनको तो
इनमें प्राण लौट आये और इनके भाव
संबोधन विहीनता के कारागार से
मुक्त हो जरा सा मुस्कुरा लें

पर सच तो ये है कि ये कविताएं
अब उदास ही रहेंगी
ये लिखी तो जाएंगी पर
तुम्हारे बाद शायद ही ये
अपने अवचेतन से निकल पाएं
बरसों तक सघन उदास रहने के बाद
ये कविताएं दम तोड़ जाएंगी
और जिंदगी की ये डायरी
तब बन्द हो जाएगी
फिर कभी नहीं खुलने के लिए

रूची शाही