क्या हमेशा आगे की ओर क़दम बढ़ाने वाला मानव थोड़ा रूक पाएगा- सुजाता प्रसाद

अब कोरोना वायरस किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा। चीन से होकर इटली, ईरान, अमेरिका, भारत सहित अन्य देशों में संक्रमण फैलाने वाले इस कोरोना वायरस से पूरा विश्व इसकी महामारी की चपेट में है। पर अपने इतने सारे साइड एफेक्ट्स और अनगिनत ड्रॉबैक्स देने के बाद इसने धरती के पर्यावरण, इसकी वनस्पतियों, नदियों, पहाड़ों और अन्य जीव जंतुओं को असीम सुख भी दिया है।
प्रकृति को निहारते समय पेड़, हमें धैर्य का पाठ पढ़ा जाते हैं तो घास, हमें बने रहने का हठ समझा जाते हैं। फूल हमें हंसना सीखा रहे होते हैं तो झूमती पत्तियां खुशियों में जीना। लॉकडाउन में घर परिवार, नाते-रिश्तेदारों, दोस्तों, संबंधियों से उन्हें समय देकर उनसे संपर्क करने से जो आत्मिक संतुष्टि मिलती है यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत ही आवश्यक था, जो इस कोरोना काल में हम सबने पूरा कर लिया। सचमुच कोरोना अपनी क़ैद में अपने अपनों के साथ यादें बनाने का खूबसूरत समय भी हमें उपहार में दे गया है। कोरोना के जानलेवा हमले ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है और इस सिलसिले में वैश्विक व्यापार जैसे आयात-निर्यात, उद्योग-कारखाने, पर्यटन-यात्राएं इन सभी से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण बहुत ही कम हो गए हैं। खबरों से मिली जानकारी के अनुसार ओजोन लेयर में जो छिद्र था भर चुका है। 2019 के तुलनात्मक अध्ययन से यह पाया गया है कि जनवरी से लेकर अप्रैल के पहले सप्ताह के बीच दुनिया भर में ग्लोबल कार्बन उत्सर्जन लगभग 17 प्रतिशत कम हुआ है।
हमारे अनुभव के बाद भी ऐसा लग रहा है कि प्रदूषण नहीं के बराबर है। मैली नदियां स्वच्छ हुईं हैं। आसमान साफ़ है। रात में भी आसमां टिमटिमाते तारों सहित सुंदर दिखता है। इंसानी गतिविधियां कम होने के कारण पंछियों का कलरव सुनाई पड़ता है। शुद्ध वातावरण का होना ही पक्षियों और अन्य छोटे छोटे जीवों को हमारे करीब ला पाया है। सुख की अनुभूति और इसकी कीमत को हम कहीं लिख नहीं सकते हैं, यह तो हमारे अंदर पल रहा है। कोरोना काल के इसी सकारात्मक पहलू पर विचार करते हुए देश के जाने-माने फिल्म निर्देशक अनिल बलानी साहब और उनकी टीम ने अपने कॉन्सेप्ट से दुनिया के अनेक पर्यावरणविदों और बुद्धिजीवियों का ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयास किया है, यह कहते हुए कि कोविड 19 से उबर जाने के बाद पूरी दुनिया में सबकी सहमति से साल में एक बार एक साथ लॉकडाउन वीक या लॉकडाउन मंथ मनाया जाना चाहिए। हां कुछ दिनों के लिए, अपनी मर्जी से, किसी वायरस या मौत के डर से नहीं। सचमुच आपकी टीम के द्वारा अभिनीत  कोविड 19 लॉकडाउन शॉर्ट फिल्म “Nurture Nature” के माध्यम से प्रसारित यह संकल्पना विचारणीय है।
कहना ग़लत नहीं होगा कि कोरोना अपने मारक संहार के परिणाम के साथ साथ प्रकृति में संतुलन भी दिखा रहा है। मतलब स्पष्ट है कि अब हमारी समझदारी पर ही हमारा अस्तित्व संभव है। एक वायरस के हमले से त्रस्त मनुष्यों का हर काम स्थगित हो गया। सिर्फ प्रकृति ही पहले की तरह ‌ चलायमान रही है। आजकल इंसानी कृत्यों द्वारा छलनी हो चुकी धरती मां इस स्थगन के कारण पुनः स्‍वस्‍थ हो जाने की प्रक्रिया में रत है। स्पष्ट रूप से दिख रहे इस हीलिंग की प्रक्रिया से मन में आशा और विश्वास के साथ अगर हम क्रमबार लॉकडाउन के समय को अपनी धरती के नाम समर्पित कर दें तो हमारे अंदर की पीड़ा थोड़ी कम जरूर हो जाएगी। साथ ही हम सकारात्मक रूप से पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन का पालन जिम्मेदारी पूर्वक कर पाएंगे।
अब हमें सोचना यह है कि क्या हमें कुछ सीख मिली या नहीं या स्थिति में सुधार होने पर हम फिर से जैसे थे वैसे ही हो जाएंगे। मानव पहले की तरह बेलगाम विचरण करने लगेगा या पुनः बिना विचारे अपनी प्रकृति को नष्ट करने की कोशिश में जुट जाएगा। इंसान दुनिया की हानि की परवाह किए बिना, प्रकृति के दुःख का एहसास किए बिना सिर्फ अपने लाभ के बारे में ही सोचने लगेगा। क्या हमेशा आगे की ओर क़दम बढ़ाने वाला मानव थोड़ा रूक पाएगा? कोविड ने इसके क़दमों को रोककर यह दिखा दिया कि जब मानव का बेतरतीब हस्तक्षेप रूक जाता है तो देखो पृथ्वी ऐसे प्रदूषण रहित होती है, आसमान ऐसे साफ़ नीला दिखता है, नदियां ऐसे स्वच्छ होती हैं और प्रकृति ऐसे हंसती है।

-सुजाता प्रसाद
नई दिल्ली