क्यों हर युग मे कालचक्र खुद को यूँ दोहराता है
हर युग में नारी की पावनता को क्यों समाज झुठलाता है
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धर्म पालन में बंधकर क्यों पुरुष विवश हो जाता है
प्राणप्रिये को उसकी उससे क्यों दूर कर दिया जाता है
हे भगवन तू नियति को क्यों इतना क्रूर बनाता है
कर्तव्य पालन और आत्मसुख में क्यों हर बार फँसाता है
इतनी कठिन परीक्षाओं से क्यों हर बार गुजरवाता है
-अंकित ओमर