आग बरसती आसमान से,
लू लगते गर्म थपेड़े
झुलस रहे हैं बाग-बगीचे,
खाली बैठे घरों में कमरे
खेत-खलियान पड़े सब सूने,
मानुष तन की व्यथा पुरानी
सूख गए सब ताल-तलैया,
दिखता नहीं दूर तक पानी
सूने पड़े शहर सभी,
कर्फ्यू की याद दिलाये
पानी बिजली का संकट,
है सबकी शामत लाए
भरी दुपहरी निकल पड़े जो,
ताप जलाये तन सारा
सांय-सांय करती हवा,
सूखे जीवन की धारा
फ्रिज कूलर और एसी हैं अब
संपन्नों की एक निशानी
दर्द गरीबों का बांटे बस,
घड़े का ठंडा पानी
-राम सेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश