अकेला चला हूँ तन्हाईयों में,
ख़ुद को खुद से मिलाने को,
रास्ते वीरान नही है ये,
शांत से लग रहे है ये,
पर चुप है इस कदर की,
मेहनत कर रहे हमे जगाने में,
कदम बढ़ा दूँ इस वादी में,
क्या हुआ कोई साथ न दे,
मुश्किल तो जीना है,
उस भीड़ भरी आबादी में,
दूर तक समेट रही है दिशा,
जैसे माँ का आँचल मुझे छिपाने में,
ये वादियों लगी है मुझे बताने में,
टिका रहे इस जालिम जमाने में,
कोई साथ रहे न रहे तेरे,
तू लगा रहे हर वक्त,
अपनी किस्मत बनाने में,
सफ़र का अंजाम आएगा,
क्यों मुड़ता है किसी का साथ पाने में,
ये सन्नटा लगा है शोर मचाने में,
दिख रहा है विशाल सब जमाने की,
क्योंकि परवाह न कि है किसी के अपनाने की,
तू भी खड़ा रहे हर मुश्किल में जमाने की,
वादियों से तू अमर अजर हो जाएगा,
आज मैं हूं प्रत्यक्ष तो कल तू भी आएगा,
सब लगे हो तुझे हराने में,
कदम बढ़ता रहा रास्ते पर लक्ष्य अपना पाने में
-मनोज कुमार