कैसी हैं ये मनमानियाँ इश्क़ की
तुमसे मिली है रूमानियाँ इश्क की
तेरे खुमार के साए में जीती हूँ
उफ्फ, ये बेकरारियाँ इश्क़ की
महफिल में भी आलम है तन्हाई का
ऐसी होती हैं दुश्वारियाँ इश्क़ की
दिल की ज़मीन पर लिख लिया है तेरा नाम
ऐसी होती है कलमकारियाँ इश्क़ की
रोम रोम में जब इस कदर रमा हो तू
तो क्यूँ ना करूँ मैं गुलामियाँ इश्क़ की
दिन-रात छेड़ता है तेरा ख़्याल मुझे
उफ्फ, कैसी हैं ये गुस्ताख़ियां इश्क़ की
तुम मेरे हो और मैं तुम्हारी
हसीन है ये कहानियाँ इश्क़ की
-निधि भार्गव मानवी