गुलमोहर- संजीव कौशल

तपती धरती पर
खिला है गुलमोहर
हरी हरी पत्तियों में जैसे
उग आया है
ज्वालामुखी
शीतल हो कर

दूर दूर से आए हैं परिंदे
रंगो की दावत पे
शाखों से लटकी हैं
चिड़ियाँ
जैसे तुम्हारी चुन्नी के फुंदे
चिड़ियाँ बोलती हैं
तो तुम्हारे होने की आहट होती है

-संजीव कौशल

संजीव कौशल जन्म 23 नवंबर 1977 को अलीगढ़, उत्तर प्रदेश के कस्बा अकराबाद में। एम. ए. अंग्रेजी, आगरा विश्वविद्यालय से 1998 में, पीएचडी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से 2007 में। 1998 से लगातार कविता लेखन। ‘उँगलियों में परछाइयाँ’ शीर्षक से पहला कविता संग्रह साहित्य अकादमी दिल्ली से प्रकाशित। जर्मन भाषा में कविता के पूरे विकास क्रम को दिखाता कविताओं का एक महत्वपूर्ण अनुवाद हिंदी में ‘ख्व़ाहिश है नामुमकिन की’ शीर्षक से फोनीम पब्लिशर्स, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित।
देश की महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में कविताएं, लेख तथा समीक्षाएं प्रकाशित। विश्व साहित्य के महत्वपूर्ण कवियों की कविताओं के अनुवाद ‘उम्मीद’ में प्रकाशित। बीसवीं शताब्दी के प्रमुख पोलिश कवियों की कविताओं का हिंदी में अनुदित संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। हिंदी के वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद। मुक्तिबोध की ‘एक साहित्यिक की डायरी’ के अंग्रेजी में अनुवाद के साथ ही हिंदी के समकालीन कवियों की कविताओं का अनुवाद कार्य कर रहे हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में एक वर्ष अध्यापन के उपरांत 2003 से दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापनरत। वर्ष 2017 में कविता के लिए दिए जाने वाला प्रतिष्ठित मलखान सिंह सिसोदिया पुरस्कार से सम्मानित।