रूठे सजन को, मनाऊं मैं कैसे
चाहत है दिल में, दिखाऊं मैं कैसे
मिले चाहे दुनिया में, कितने हमें ग़म
नहीं जी सकेंगे, तुम्हारे बिना हम
जमाने को दुख ये, बताऊं मैं कैसे
चाहत है दिल में, दिखाऊं मैं कैसे
पतझड़ यहां पर, आया है क्यों ये
मुझ पर कहर इसने, ढाया है क्यों ये
उलझन है मन में, मिटाऊं मैं कैसे
चाहत है दिल में, दिखाऊं मैं कैसे
आये न सावन, चमन जो खिला दे
बिछुडे हुए मन जो, फिर से मिला दे
मुहब्बत की रस्में, निभाऊं मैं कैसे
चाहत है दिल में, दिखाऊं मैं कैसे
रामसेवक वर्मा
विवेकानन्द नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश