मेरे हमदम मेरी तनहाइयाँ फ़िर नापने निकले
कि मेरे इश्क़ की गहराइयाँ फ़िर नापने निकले
सिसकती रूह की परछाइयाँ फ़िर नापने निकले
बिछा दिल रूप की मदहोशियाँ फ़िर नापने निकले
नजऱ के ख़ंजरों के दम लगाकर आग़ तन में वो
मेरे क़िरदार की दमदारियाँ फ़िर नापने निकले
मुहब्बत में हक़ीक़त का भरोसा न रहा जिनको
लुटे जज़्बात की कमजोरियाँ फ़िर नापने निकले
दग़ा से ख़ून-ए-आँसू हुए काफ़ूर जब देखा
रुआँसी आँख की रुसवाईयाँ फिर नापने निकले
चुभो नश्तर ज़िगर को वो कुरेदा कर रहे हर पल
कि चेहरे पर रुकी खामोशियाँ फिर नापने निकले
नज़ाक़त से मुहब्बत में बनाकर फासलें ‘रकमिश’
ग़मों से मंजिलों की दूरियाँ फिर नापने निकले
रकमिश सुल्तानपुरी