मुक्तक- आखिर कब तक: रूची शाही

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अब सोचते हैं कि तुमसे किस तरह मिला करें हम
कोई रिश्ता न तुमने छोड़ा तो क्यों न खुला करें हम
हज़ारों जख्म लगाए हैं इस दुनिया ने मेरे दिल पे
एक अगर तुमने भी दे दिया तो क्या गिला करें हम

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बच्चे जैसा है दिल मेरा तेरी यादों से कब तक खेलूं मैं
रह-रह कर मांगे तुझको, तू दे दे ना खुद को, ले लूं मैं
लम्हा-लम्हा भारी है, जीते-जीते साँसे थक रही हैं अब
तुम्हें चाहने की सज़ा है सब, आखिर कब तक झेलूं मैं

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स्नेह लिखूँ, अभिसार लिखूँ, जी भर तुमको दुलार लिखूँ
हृदय लिखूँ, साँसे लिखूँ, तुमको प्राणों का आधार लिखूँ
सारी दुनिया सिमटी है मेरी, तुम्हारी इन सुंदर आंखों में
सुनो! खोल दो ना बाहें अपनी, मैं इनको अपना संसार लिखूँ

रूची शाही