चंबल व ग्वालियर क्षेत्र में 3 अगस्त को भारी बरसात, अतिवृष्टि और भीषण बाढ़ से क्षतिग्रस्त अति उच्चदाब बिजली लाइनें व टॉवर को मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी के अभियंताओं व तकनीकी कार्मिकों ने दुर्गम, जटिल व दुरूह परिस्थितियों में अपनी मेहनत व लगनशीलता से आज शुक्रवार को व्यवस्थित व पुनर्स्थापित कर दिया।
वहीं बाढ़ के बाद से ही बंद अटल सागर बांध में स्थापित मरहीखेड़ा जल विद्युत गृह (हायडल पावर स्टेशन) से आज पुन: बिजली उत्पादन प्रारंभ हो गया और पुनर्स्थापित 132 केवी मरहीखेड़ा-करेरा अति उच्चदाब लाइन से मध्यप्रदेश को बिजली आपूर्ति शुरू कर दी गई।
अतिवृष्टि से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए थे टॉवर-
मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी के प्रबंध संचालक सुनील तिवारी ने बताया कि गत 3 अगस्त को शिवपुरी, दतिया, ग्वालियर क्षेत्र में हुई अतिवृष्टि के बाद आई भीषण बाढ़ की विभीषिका में तबाह हुए पावर ट्रांसमिशन सिस्ट्म को असाधारण सुधार कार्य करते हुए दुरस्त कर दिया। अतिवृष्टि और बाढ़ में करीब 45 किलोमीटर मरहीखेड़ा-करेरा लाइन के दोनों सर्किटों का अधिकांश हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। इस कारण जल विद्युत उत्पादन बंद था। अटल सागर डैम से तकरीबन 3 किलोमीटर पहले मरहीखेड़ा ग्राम में 134 से 137 लोकेशन तक के टावर बुरी तरह प्रभावित थे। लगातार बारिश बाढ़ और सड़क मार्ग अवरुद्ध होने के कारण उन स्थानों में पहुंचना अत्यंत कठिन हो गया था।
ट्यूब के सहारे पहुंचा लाइन स्टॉफ-
इस विषम परिस्थिति में अति उच्च दाब मेंटेनेंस के मुख्य अभियंता एसएस बघेल और अधीक्षण अभियंता एनपी गुप्ता ने स्थल पर स्टाफ को पहुंचाने के लिए जल संसाधन विभाग के स्टीमर का उपयोग करने की योजना बनाई, जिसके सहारे क्षतिग्रस्त लोकेशन के पास तक पहुंचा जा सके। उफनती सिंध में नाव चलाना भी कठिन था। लाइन स्टाफ कार्मिक रामदास राय और लेख राम ने अदम्य साहस दिखाते हुए अपनी जान की परवाह किए बिना ट्यूब के सहारे टॉवरों तक पहुंचे। उन्होंने साइट की स्थिति मोबाइल के माध्यम से अभियंताओं तक पहुंचाई, जिससे सुधार कार्य का आंकलन संभव हो पाया।
कीचड़ में पैदल चलना भी मुश्किल था-
स्थिति इतनी भयावह थी की साइट पर न ट्रैक्टर जा सकता था ना जेसीबी से। इस क्षेत्र में इतना कीचड़ था कि पैदल चलना भी संभव नहीं था। मरहीखेड़ा ग्राम के पास चार टॉवर पूर्णतः क्षतिग्रस्त हो गये थे। कुछ टॉवर उखड़ कर दर्जनों मीटर दूर चले गए थे। जिसमें एक टॉवर करीब 60 मीटर दूर पाया गया। 12 टावरों की नींव सुधारी गई।
पावर ट्रांसमिशन कंपनी के अभियंताओं व तकनीकी कार्मिकों द्वारा सभी कार्य बिना यांत्रिक मशीनों के हाथों द्वारा ठीक किए गए। यहां तक कि टावर के भारी भारी पार्टस भी करीब 3 से 4 किलोमीटर पैदल, हाथों के सहारे सुधार स्थल पर पहुंचाए गए। इन क्षेत्रों पर बेहद वजनी करीब पांच किलोमीटर कंडक्टर का अधिकांश हिस्सा भी हाथों के सहारे बदला गया। मध्य प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी के अभियंताओं व तकनीकी कार्मिकों के अदम्य साहस, लगनशीलता व कर्त्तव्यपरायणता से इस क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति बहाल हो पायी।