हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी, पद्मनाभा एकादशी भी कहते हैं।
देवशयनी एकादशी के दिन जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में शयन करने चले जाते हैं, तो वहीं कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जागृत होते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है।
चातुर्मास यानि देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तिथि तक कोई भी शुभ अथवा मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि चातुर्मास की इस अवधि में सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं।
देवशयनी एकादशी की उदयातिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का व्रत रविवार 6 जुलाई 2025 को रखा जाएगा। एकादशी तिथि का आरंभ शनिवार 5 जुलाई को शाम 6:58 बजे होगा और समापन रविवार 6 जुलाई को रात 9:14 बजे होगा। उदयातिथि के अनुसार रविवार 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। वहीं देवशयनी एकादशी व्रत का पारण सोमवार 7 जुलाई को सुबह 5:29 बजे से लेकर सुबह 8:16 बजे तक किया जा सकेगा।
देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:08 बजे से 4:49 बजे तक, अभिजित मुहूर्त सुबह 11:58 बजे से दोपहर 12:54 बजे तक, विजय मुहूर्त दोपहर 2:45 बजे से अपरान्ह 3:40 बजे तक रहेंगे।
ऐसी मान्यता है कि इस संयोग में भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के बाद स्वच्छ चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करना चाहिए। उसके बाद उनको भोग, दीप, धूप बत्ती आदि अर्पित करनी चाहिए। इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-आराधना करनी चाहिए।
चातुर्मास का आरंभ
रविवार 6 जुलाई 2025 को देवशयनी एकादशी के दिन से ही चातुर्मास आरंभ हो जाएगा, जो देवउठनी एकादशी के दिन समाप्त होगा। चातुर्मास में चार माह तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होते, इस अवधि में शादी, मुंडन आदि सभी मांगलिक कार्य बंद रहते हैं।
चातुर्मास के समापन दिन देवउठनी एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु चार माह के शयनकाल के बाद जागते हैं और फिर से समस्त मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है। इस वर्ष देवउठनी एकादशी शनिवार 1 नवम्बर 2025 को है।
चातुर्मास के दौरान भगवान शिव, भगवान श्रीहरि विष्णु, भगवान गणेश और माँ दुर्गा की उपासना करना श्रेष्ठ माना गया है। चातुर्मास की अवधि में ही 10 दिन का गणेशोत्सव पर्व, शारदेय नवरात्रि, दशहरा, दिवाली महापर्व मनाए जाते हैं। इसके अलावा भगवान शंकर को समर्पित सावन मास के सोमवार व्रत, नागपचंमी, करवा चौथ जैसे कई महत्वपूर्ण व्रत भी इसी अवधि में ही किए जाते हैं।