Monday, November 17, 2025
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शरद पूर्णिमा-2025: रास पूर्णिमा-कोजागरी पूर्णिमा, तन-मन-धन के लिए सर्वश्रेष्ठ

ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव
ज्योतिष केसरी

वर्ष की सभी बारह पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा का एक विशेष महत्व है। कहा जाता है कि केवल इसी दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता है और पूर्ण बलशाली होता है। यह पूर्णिमा वर्षा ऋतु के समापन और शरद ऋतु के प्रारम्भ का संकेत देती है। इसे रास पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। बंगाल, असम और उड़ीसा प्रान्तों में इस दिन लक्ष्मी जी की विशेष पूजा करते हैं और रात्रि जागरण करते हैं।

कब होती है शरद पूर्णिमा?

आश्विन मास में नवदुर्गा पर्व के बाद आने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है।

शरद पूर्णिमा का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रदेव अत्यंत बलशाली होते है, और पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होते हैं। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी में अमृत तुल्य औषधीय गुण होता है। अतः शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्र देव का पूजन करने के बाद, चावल की खीर को रात भर चांदनी रात में खुले आकाश के नीचे रखा जाता है, फिर दूसरे दिन उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। 

ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा में चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, वहीं देवी महालक्ष्मी अपने भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। दरअसल शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागरी पूर्णिमा इसलिए भी है कि इस दिन रात्रि काल में भगवती लक्ष्मी अपने भाई चंद्रदेव के साथ धरती पर आती हैं और पूछती हैं “कोजागरी” यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है?

अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है। इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार हैं जोकि देवताओं के वैद्य या डॉक्टर माने जातें हैं। अतः इस नक्षत्र पर  भ्रमण करने पर चंद्रमा में स्वाभाविक रूप से औषधीय बल आ जाता है। अतः इस दिन चांदनी का सेवन करने से तन और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने रचाया रास

भागवत पुराण के अनुसार त्रेता युग में अनेक गोपियों नें श्री कृष्ण को अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए देवी जगदम्बा का पूजन किया था। जिसके कारण देवी ने उन्हें कृष्ण का सान्निध्य पाने का वरदान दिया। तब आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान श्री कृष्ण नें गोपियों संग महारास रचाया था।

कुमार कार्तिकेय का जन्म

कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही शिव और पार्वती के तेज से कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ था। अतः इस तिथि को शैव सम्प्रदाय के लोग भी बड़ी श्रध्दा से मनाते हैं।

इस प्रकार से शरद पूर्णिमा के दिन शिव और विष्णु भक्त दोनो ही चंद्रमा, माता लक्ष्मी, भगवान श्रीहरि विष्णु और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं।

इस वर्ष कब है शरद पूर्णिमा?

हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं।  इस बार 2025 में शरद पूर्णिमा सोमवार 6 अक्टूबर को मनाई जाएगी। 

पूर्णिमा प्रारम्भ- 6 अक्टूबर दोपहर 12:23 बजे से 

पूर्णिमा समापन- 7 अक्टूबर प्रातः 9:16 बजे।

चंद्रोदय- शाम 5 बजकर 33 मिनट पर

पूजन विधि-विधान

पूर्णमासी के दिन प्रातःकाल में स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर लकड़ी के एक पाटे पर भगवान लक्ष्मी नारायण और शिव परिवार के तस्वीर स्थापित किया जाता है। एक कलश में शुद्ध जल और एक कलश में गेहूं के दाने भरकर रखा जाता है। फिर धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से पंचोपचार पूजन किया जाता है। फिर गेहूं के दाने हाँथ में रखकर पूर्णिमा की कथा सुनी जाती है। फिर दिन भर व्रत-उपवास रख कर रात्रि चन्द्र देव को अर्घ्य देकर खीर का भोग लगाते हैं और पूजन करते हैं। फिर रातभर खीर चांदनी में रखकर सुबह प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है और व्रत का पारण किया जाता है।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा

प्राचीन काल में एक साहूकार की दो पुत्रियाँ थीं। दोनों पुत्रियां शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजन किया करती थीं। परन्तु एक पूरे विधि विधान और निष्ठा से व्रत किया करती थी, जबकि दूसरी अधूरे मन से अधूरी पूजा किया करती थी। बड़ी पुत्री के तो कई संतानें हुईं और वे फलने फूलने लगीं, जबकि छोटी पुत्री की संतानें पैदा होते ही मर जाया करती थीं। जब छोटी पुत्री ने इसका उपाय ज्योतिषियों और पंडितों से पूछा तो उन्होंने उसे पूरी निष्ठा और श्रद्धा भक्ति के साथ शरद पूर्णिमा व्रत करने का मार्ग बताया। उसके बाद छोटी पुत्री की संतानें भी जीवित रहने लगीं। उन्हें सुख-सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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