ऋतुओं में प्यारा बसंत- स्नेहलता नीर

ख़ुशियाँ ले आया अनंत है।
ऋतुओं में प्यारा बसंत है।
ऋतुओं में न्यारा बसंत है।

पतझर को आ दूर भगाया,
कोंपल जगी जिया मुस्काया।
धानी धरा बना सरसाया,
मलय समीरण को महकाया।।
किया शिशिर का आज अंत है।
ऋतुओं में प्यारा बसंत है।
ऋतुओं में न्यारा बसंत है।

धरती को श्रृंगार दिया है,
नव ऊर्जा संचार किया है।
नाच रहा मन मोर पिया है,
हर्ष दिया सब शोक लिया है।।
नियति-नियंता दयावंत है।
ऋतुओं में प्यारा बसंत है।
ऋतुओं में न्यारा बसंत है।

फ़सले लेतीं हैं अँगड़ाई,
खेतों में सरसों लहराई।
अमराई भी है बौराई,
खिली धरा की यूँ अँगनाई।।
लाली छाई दिग्दिगंत हैं।
ऋतुओं में प्यारा बसंत है।
ऋतुओं में न्यारा बसंत है।

कली-कली देखो मुस्काई,
अलि डोलें तितली इठलाई।
कोयल की दे कूक सुनाई,
फगुआ को आवाज़ लगाई।।
सच कुसुमाकर कलावंत है।
ऋतुओं में प्यारा बसंत है।
ऋतुओं में न्यारा बसंत है।

कृपा शारदे माँ बरसाती,
हरे मूढमति ज्ञान लुटाती।
सृष्टि सकल जैसे मदमाती,
नेह भरी मधु पढ़ता पाती।।
माधव मन का बड़ा संत है।
ऋतुओं में प्यारा बसंत है।
ऋतुओं में न्यारा बसंत है।

अंतर्मन में प्रीत जगाई,
विरहन सजन बिना अकुलाई।
सिसक-सिसक कर रात बिताई,
करो कृपा हे कृष्ण कन्हाई!
ला दो खोया कहाँ कंत है।
ऋतुओं में प्यारा बसंत है।
ऋतुओं में न्यारा बसंत है।

-स्नेहलता नीर