अमर बलिदानी हाड़ी रानी: डॉ. निशा अग्रवाल

डॉ. निशा अग्रवाल

जयपुर, राजस्थान

राजस्थान की धरती गूंजे, गाथा वीर अनोखी थी,
हाड़ी रानी की त्याग कहानी, सच्ची प्रेम-विलोखी थी।

पातल गढ़ की रानी बनकर, सौंदर्य अनुपम निखर उठा,
स्वामी चूड़ावत संग बंधी जब, प्रेम समर्पण उमड़ उठा।

रणभेरी जब गूँज उठी, स्वामी को समर में जाना था,
धरती माँ का कर्ज निभाने, रण में शीश चढ़ाना था।

प्रिय की आँखें डगमगाईं, नेह ने पथ में घेरा था,
पर हाड़ी रानी दृढ़-निश्चयी, प्रेम से ऊंचा देश मेरा था।

बोली मधुर, पर दृढ़ थी वाणी, वीर की शंका हर ली थी,
“तुम हो रण के वीर, प्राणप्रिय, अब कर्तव्य की घड़ी वो थी।”

श्रृंगार किया, फिर शीश दिया, अमर प्रेम की गाथा रची,
चूड़ावत रण में विजयी हुए, इतिहास प्रेम की जब रची।

हाड़ी रानी अमर रही, जो प्रेम, समर्पण, त्याग सिखाए,
भारत की बेटी वो मिसाल, जो बलिदान अमर कहलाए।