अपनी भाषा: अंजना वर्मा

अंजना वर्मा
ई-102, रोहन इच्छा अपार्टमेंट
भोगनहल्ली, बैंगलुरू -560103
anjanaverma03@gmail.com

जो रस अपनी भाषा में है
वो रस कहाँ मिलेगा?
फूल हँसे अपनी मिट्टी में
मरु में कहाँ खिलेगा?

जीवन की उर्वरा भूमि से
उगती दूब -सी वाणी
ओठों से ऐसे झरती है
जैसे बहता पानी
संवेदन-चिंतन का साथ
ऐसा कहाँ मिलेगा?

सुख में जो आतिशबाजी बन
फुलझरियाँ छिटकाए
दुख में पीड़ित अंतस्तल को
परिजन-सा सहलाए
ऐसा हमसाया-हमराही
दूजा कहाँ मिलेगा?

यह है डोर रसीली जो कि
दिल से दिल को बाँधे
बतरस की नदिया बहती
सुख दुख के ताने-बाने
इसे छोड़कर सहज प्रेम का
सेतु कहाँ मिलेगा?

पुरखों का गड़ा खजाना है
इसे भूल मत जाना
अपनी माटी का गौरव है
इसे नहीं ठुकराना
अपनापन का सच्चा सुख
इसमें ही घुला मिलेगा

पहचान हमारी भाषा है
ज्ञान हमारी भाषा
इतिहास सुरक्षित भाषा में
विश्वास हमारी भाषा
संस्कृति का शिलालेख
ऐसा कहाँ मिलेगा?