प्रकृति, जीवन, प्रेम व सृजन के पक्ष में खड़ी कविताएं: महावीर रवांल्टा

पुस्तक- तुम भी कभी किसी दिन (कविता संग्रह)
कवयित्री- डॉ अंजना वर्मा
प्रकाशक- श्री साहित्य प्रकाशन, डी-580, अशोक नगर,
गली नं-4, निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा, दिल्ली-110093
पृष्ठ संख्या- 144
मूल्य- 300.00 रुपए
समीक्षक- महावीर रवांल्टा
संभावना-महरगांव,
पत्रालय-मोल्टाड़ी, पुरोला,
उतरकाशी (उत्तराखंड)-249185
मो-8894215441, 6397234800
ईमेल: [email protected]

‘तुम भी कभी किसी दिन’ डॉ अंजना वर्मा की छोटी-बड़ी 79 कविताओं का संकलन है। बचपन से बुढ़ापे तक उम्र का लंबा सफर तय करती स्त्री का जीवन संघर्ष, इच्छा-अनिच्छा, आशा-आकांक्षा ‘लड़की’, ‘मैंने बनाया है अपना रास्ता’, ‘इसी सरगम की लौ से’, ‘एक साजिश हो रही है’, ‘लिखो मेरी कहानी’ ‘मां’, एक उंगली उठ जाती है’, ‘औरत के लिए क्यों ?’, ‘मेरे चेहरे से झांकती है मां’ कविताओं के माध्यम से सामने आता है। इनमें जहां लड़की और लड़के के बीच भेदभाव को‌ सहता स्त्री मन है वहीं मां की स्मृतियों का संतान की सोच में रच बस जाने की अनुभूति का भी चित्रण है। ‘सृजन का अंधेरा’ में संतान के जन्म से जुड़ी माकी भूमिका है तो ‘छोटा ईश्वर’ मां बनने के सौभाग्य पर इठलाती स्त्री का सार्थक बयान है। ‘लिफ्ट ऊपर चली गई’ में एक पत्नी की अपने पति के प्रति निष्ठा, चिंता भाव व दायित्वबोध उजागर हुआ है। ‘बची हुईं लड़कियां’ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मुहिम की पुरजोर पैरवी करती प्रभावशाली कविता है, जिसके माध्यम से स्त्री के सारी उम्र का संघर्ष स्वयं: ही सामने आ जाता है।

‘फिर हार गई औरत’ व ‘वह सर्द रात’ निर्भया कांड को लक्ष्य बनाती है तो ‘एक दिन मैंने’, ‘नीली पहाड़ी’ स्त्री के भीतर के अकल्पनीय सच का ताना-बाना सामने रखती हैं जो हमारे स्मृति पटल पर अंकित रहने वाले सच की बानगी बन जाता है। ‘तहखाना अपने लिए’ व ‘जरा देखो’ में पुरुष द्वारा स्त्री को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के ज़िक्र के साथ हवा और पानी के साथ उसे भी ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण तत्व बताया गया है। ‘मेरा शून्य’ अपने आप से संवाद करती कविता है।
‘जनता क्या है?’ में महंगाई की मार से बेहाल जनता की दारुण स्थिति, ‘जून की धरती पर’ में ठेला खींचते मजदूर का चित्रण है जबकि ‘उन बच्चों की आंखों में’, ‘परिदृश्य’,’नेपथ्य में’, ‘ओ बच्चे !’ कविताओं में ढाबे व कारखानों में काम करते, कूड़ा बीतने, सड़कों पर गाड़ी के शीशे साफ करते बच्चों की विवशता व दुर्दशा तथा दूधमुंहे बच्चे को पीठ से लगाकर भीख मांगती महिला के द्रवित करने वाले चित्रण समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों का खाका प्रस्तुत करती हैं। बच्चों के सहानूभूति का भाव रखती हुई अंजना उनके भोलेपन, मासूमियत व निश्च्छलता का भी चित्रण करती हैं। ‘अभिमन्यु’ में अपनी झुग्गी-झोपड़ियों बेदखल हुए साधनहीन लोगों की पीड़ा का चित्रण है तो ‘ठेकेदार’ मानव तस्करी से जुड़े भयावह सच को हमारे सामने रखती है जिसमें हमारे राष्ट्र के भविष्य बच्चों को श्रम कराने के लिए विभिन्न स्थानों पर भेजा जाता है। ‘पर्वत तोड़कर’ में अतीत की संघर्षरत पीढ़ी के योगदान का खुलासा है तो ‘सलवटें’ कल्पना की बेहद संजीदा उड़ान की सैर कराने में समर्थ कविता है। ‘एक छोटी सरसों’ किसी को भी महत्वहीन आंकने के बजाय सही समय के इंतजार की बात पर जोर देती है जिसका लोहा सारी दुनिया मानती है।

उनकी कविताओं- ‘प्यार’, ‘मैंने प्यार बांटा’, ‘प्यार जब’, ‘खोना ही पाना’, ‘प्यार के ही कारण’ में प्रेमअलग-अलग ढंग से स्फुटित हुआ है और उन्होंने उसे अपने अनूठे अंदाज में परिभाषित भी किया है। प्रेम को लेकर उनका अंदाज बेबाक, स्पष्ट एवं साहस भरा है। ‘विदा कर दो’, ‘आश्विन’, ‘अमलतास’, ‘पलाश’, ‘अपराजिता’, ‘सड़क किनारे के पेड़’, ‘जंगल में बारिश’, ‘धानी धूप’, ‘आंधी’, ‘बारिश’ कविताओं के माध्यम से प्रकृति,मौसम व पेड़-पौधों के प्रति उनका गहरा अनुराग ही दृष्टिगत नहीं होता अपितु जीवन व परिस्थिति के साथ उनके गहरे जुड़ाव का ताना-बाना भी सामने आता है। ‘अमरुद का पेड़’ में उस पर कुल्हाड़ी के प्रहार से उपजे दर्द का अहसास काफी समय तक आहत व विचलित करता रहता है। ‘चलो न चलें!’ वर्षो सेे चांद को न निहार पाने की लाचारी को इंगित करने के बहाने उसके स्मरण की पैरवी है तो ‘आंगन वाला चांद’ में भी हमारे संस्कारों व जीवन से बेदखल होते जा रहे चांद की उदासी का हृदयस्पर्शी चित्रण है।

जीव जंतुओं और पशु-पक्षियों के प्रति अंजना वर्मा की कविताओं में खासा लगाव है जो प्रभावशाली ढंग से सामने आता है। ‘बहादुर सिपाही’ में वे घर की रखवाली करने वाले कुत्ते की वफादारी व बीमारी में उसकी लाचारी दर्शाती हैं जबकि ‘अचानक ही भेंट हुई’ मामूली से टिड्डे के साथ उनके गहरे व रोचक लगाव की बानगी सामने आती है। ‘बोला भुजंगा’ व ‘आत्मविश्वास’ में भी जीव जंतुओं की सक्रियता व क्रियाकलापों का मानव जीवन पर प्रभाव दृष्टिगोचर हुआ है। साथ ही उसके भीतर की अपार संभावनाओं को जगाने का आह्वान है। वह भी उस स्थिति में जब हम अपने कर्तव्य से विमुख होकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। हमारा यही दुर्गण हमारे आत्मविश्वास को धत्ता दिखाता है। ‘उड़ गई सोन चिरैया’ चिड़िया की अनुपस्थिति का आभास कराती कविता है जबकि ‘आग’ जीवन की आंतरिक संवेदना को उजागर करती है।

‘सब डागी हैं’ में बच्चों की निश्च्छलता के बहाने मनुष्य के कुत्ते में तब्दील होने का विद्रूप सच है तो ‘पहली बार’ में प्रकृति व जीव जंतुओं की लुभावनी क्रीडा को निहारता वही बचपन है जो अपनी बाल सुलभ इच्छा के चलते बस इसी को निहारने की चाह रखता है। ‘खिलौने और बच्चे’ खिलौनों के प्रति बच्चों के लगाव व उनके अभाव की स्थिति को चित्रित करती है। ‘चले आए थे समीप’ में अपने सुखद अतीत के साथ गहरे से जुड़कर यंत्रणा में जीने का सच उजागर हुआ है जिसमें लोक के प्रति उनका जुड़ाव उजागर होता है। ‘लौटा दो’ में भूमंडलीकरण के दौर से गुजरते हुए अपने पैरों तले की जमीन छीन जाने का दर्द सहते हुए अपने स्वर्णिम अतीत में लौटने की प्रबल उत्कंठा और छटपटाहट की अभिव्यक्ति है। ‘दुकानें और घर’ बाजार पर हमारी निर्भरता और उसी पर अंगुली उठाने की मानसिकता को दर्शाती है। ‘आवाज’ की महता को भी अंजना अपने विशिष्ट अंदाज में अभिव्यक्त करती हैं। ‘वे आते हैं रोज’ उम्र की ढलान पर पहुंचकर एकाकीपन व उपेक्षा का दंश झेलते हुए पार्क में टहलने के दौरान आपस में एक-दूसरे का दु:ख दर्द बांटकर अपने को हल्का करने वाले बुजुर्गो की स्थिति का खुलासा है। ‘एक टुकड़ा सूर्य’ में संबंधों की गहनता, तरलता और उनमें घुली मिठास का जिक्र है जबकि ‘नजर न लगे !’ में नाती के प्रति दादा का अप्रतिम लगाव सामने आता है। ‘मिल गया एक दिन’ में पढ़ाई के बोझ से एक दिन के लिए मुक्ति मिल जाने पर चिड़िया की तरह चहकते बच्चों की उन्मुक्त हंसी है। ‘यह अपराध नहीं है’ निरंतर आगे बढ़ने की दौड़ में शामिल अभिजात्य वर्ग का अपने लोगों को समय न दे पाने के अपराधबोध से दो-चार कराती है जबकि ‘अर्थ विस्तार’ में अर्थ के प्रवेश से रिश्तों के छीजने की स्थिति का खुलासा है। ऐसे ही ‘चिज्जी’ में अपनेपन की भीनी महक की गहरी अभिलाषा है। ‘वे नाच रही हैं’ हिजड़ों के जीवन से जुड़े त्रासद सच को उकेरती मर्म स्पर्शी कविता है। ‘चाय का मग्गा’ हमारी दिनचर्या में बड़ी हद तक घुली मिली चाय के बहाने निर्जीव मग्गे से जुड़ाव का सजीव चित्रण है तो ‘चौराहे पर’ किसी अनजाने व्यक्ति का हमारी उन्नति में सहायक होकर उसकी उपस्थिति के भान को उजागर करती कविता है।

डॉ अंजना वर्मा की इन कविताओं में जहां प्रकृति के साथ मनुष्य के गहरे संबंधों का खुलासा हुआ है वहीं जीव-जंतुओं और पशु-पक्षियों के प्रति उनकी गहरी संवेदना व अन्वेषी दृष्टि भी नजर आती है।हमारे जीवन की विभिन्न स्थितियों को उजागर करती हुई संग्रह की अधिकांश कविताएं मानव के पक्ष में खड़ी होने वाली सार्थक कविताएं हैं। समाज के उच्च और मध्यम वर्ग के अलावा अभावग्रस्त और निरंतर संघर्ष के थपेड़े का रहे निम्नवर्गीय लोग प्रमुखता से अंजना की कविताओं में आ गए हैं। हमारे समाज से बेदखल होते जा रहे इन लोगो के प्रति उनके मन में एक खास तरह की सहानुभूति और बेचैनी का स्वर मुखर हुआ है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक स्त्री जीवन का संघर्ष, खिलखिलाता बचपन व अकेलेपन की मार सहता बुढ़ापा भी इन कविताओं के माध्यम से उजागर हुआ है। भूमंडलीकरण के दौर में निरंतर आगे बढ़ने की होड़ के कारण अपने पीछे बहुत कुछ छूट जाने की टीस, रिश्तों में आ रहा दूराव भी इन कविताओं के माध्यम से आसानी से महसूस किया जा सकता है। प्रकृति के साथ ही मौसम, जीव जंतु व पशु पक्षियों तथा निर्जीव चीजों पर भी अंजना की पैनी नजर है जो इनके प्रति उन्हें बेहद संवेदनशील बनाती है।

समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों का अनायास या सुनियोजित ढंग से अंजना की कविताओं में आ जाना उनकी कविताओं को व्यापक अर्थ व समर्थन देता हुआ उन्हें प्रभावी और सर्वग्राह्य बनाने में मददगार हुआ है। इतना ही नहीं इनकी स्थिति व उपस्थिति के बहाने अपने समय के एक विद्रूप सच से भी हमारा सामना होता है।

अपनी रचनाधर्मिता का किसी दक्ष शिल्पी की तरह ईमानदारी से प्रयोग करने वाली अंजना हमारी कल्पना की सार्थक उड़ान व सधी भाषा के सहारे अपनी कविताओं में कोई लय सी पैदा कर उसे उसके चरम तक इस ढंग से पहुंचाती हैं कि वह लंबे समय तक स्मृति पटल पर अंकित रहने वाली समर्थ व सार्थक कविताएं बन जाती हैं। अपनी भाषा और शिल्प के स्तर पर आश्वस्त करने वाली अंजना की ये कविताएं हमारे आसपास घटित होने वाले सच से हमारा सामना बेबाकी से कराती हैं।इसलिए ये आमजन के बहुत निकट की यथार्थवादी कविताओं में भी स्वत: ही तब्दील हो जाती हैं।
कहा जा सकता है कि मानवता, प्रकृति, जीवन, सृजन और प्रेम के पक्ष में खड़ी होने वाली ये कविताएं हमें गहरे जीवनबोध के साथ ही आपसी सौहार्द व निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देने में समर्थ कविताएं हैं।