गंगा-धरा का पावन पर्व: डॉ. निशा अग्रवाल

डॉ. निशा अग्रवाल

जयपुर, राजस्थान
(विशेष पर्यावरण दिवस और गंगा दशहरा पर समर्पित)

हरियाली मुस्काए नभ में, पात-पात में प्राण,
प्रकृति करे जब रक्षित हमसे, मिले हमें वरदान।
नदियाँ गाएँ अमृत धारा, बहे जहाँ सुखधाम,
संरक्षण हो धरती माता का, यही हो सबका काम।

गंगा माता धरा पर आई, पुण्य लहर बनकर,
पाप हरें, तन-मन तरसाएँ, निर्मल जल बनकर।
दशहरा पर्व कहे पुकारे, करो ह्रदय से ध्यान,
शुद्ध करो जीवन की धारा, त्यागो विकृत ज्ञान।

पेड़ लगाओ, जल बचाओ, करो वनों से प्यार,
तभी बचेगी सांस हमारी, होगी जयजयकार।
संगम हो जब संकल्पों का, स्वच्छ धरा का भाव,
तभी बहेगी गंगा जैसे, निर्मल, शांत, सुचाव।

आज के इस पावन दिन पर, लें हम यह संकल्प,
धरती को स्वर्ग बनाएँ फिर से, न हो कोई कलंक।
गंगा की आरती करें हम, साथ करें प्रण यही,
प्रकृति, नदियाँ, पर्वत, जंगल—सबकी रक्षा सही।