हिंदी का गौरव गीत: डॉ. निशा अग्रवाल

डॉ. निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान

संस्कृत की छाया से निकली, भाषा बनी महान,
प्राकृत, अपभ्रंश से होकर, हिंदी ने ली उड़ान।

रसखान की वाणी में गूँजी, कृष्ण भक्ति की आस,
मीरा की तानों में छलकी, प्रेम भक्ति की प्यास।

सूरदास ने आँखों से देखा, अंतर का सुंदर धाम,
कबीर के दोहों में गूँजी, सच्चाई का नाम।

तुलसी ने रामकथा गाई, नीति–नीर भरा सागर,
भक्ति, नीति और मर्यादा का, दिया हमें अमर आगर।

भारतेंदु ने आधुनिकता दी, भाषा को नव रूप,
प्रेमचंद ने जन–जीवन में, भर दी नयी धूप।

दिनकर की ओजस्वी वाणी, जगा गई जनमानस,
महादेवी के गीतों में था, करुणा का मधुमास।

हिंदी है जीवन की गीता, ज्ञान और संबल है,
राष्ट्रकवि की वाणी जैसा, वीरता का अंबल है।

हिंदी हमारी पहचान है, संस्कृति का सम्मान,
जन–जन की आशा हिंदी है, भारत की मुस्कान।