जन्म मरण जीवन के संग हैं
नचाये एक मदारी,
मरा नहीं वही जो
खतरों का बना खिलाड़ी
जीवन के हर पथ पर
जोखिम उठानें पड़तें हैं,
काटों के पथ पर चल
जीवन संवारने पड़तें हैं
सुसुप्त सिंहस्य मुख मृग घुसे नहीं
चाहे हो कितना भी बलधारी,
मरा नहीं वही जो
खतरों का बना खिलाड़ी
खेलम खेल के रेलम पेल में
जीवन दांव पर लगता है,
जो जीता वही सिकंदर
नहीं तो जीवन भर मारा-फिरता है
जीत-हार महत्वपूर्ण नहीं
महत्वपूर्ण है लेना भागीदारी,
मरा नहीं वही जो
खतरों का बना खिलाड़ी
खेती-किसानी करता कृषक
मौसम के खतरा का मोल लेता है,
देश की रक्षा करता रक्षक
बारूद पर बैठा पहरा देता है
जीवन दांव पर लगाती अपनी
जननी धरणी महतारी,
मरा नहीं वही जो
खतरों का बना खिलाड़ी
-त्रिवेणी कुशवाहा ‘त्रिवेणी’