हुई भूल जो समझा उन्हें शाइस्ता
जाती है अब जान आहिस्ता-आहिस्ता
करना न मोहब्बत कभी बेक़दरों से
ऐ दिलवालों तुम्हें वफ़ा का है वास्ता
मंज़िल तो मिलती नहीं ऐसे राही को
तक़लीफ़ों में ही गुज़रता है रास्ता
खंडहर बन चुका है अब ये दिल
जो हुआ करता था महल आरास्ता
-आलोक कौशिक
मनीषा मैन्शन, बेगूसराय,
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