इश्क़ जबसे किया: स्नेहलता ‘नीर’

इश्क़ जबसे किया बंदगी हो गई
दिल की रौशन गली, चाँदनी हो गई

बिन तुम्हारे मुझे चैन पल को नहीं
दिल्लगी में ये आदत बुरी हो गई

तीर-ओ-ख़ंजर से कम तो नहीं लफ्ज़ थे
दिल मिले तो जुबाँ चाशनी हो गई

दिल लगा, कर जफ़ा, क़त्ल करके गया
दफ़्न दिल पर लिखी डायरी हो गई

तुम मिले, दिल मिले, चार नजरें हुईं
एक मंज़िल हुई आशिक़ी हो गई

‘नीर’अहसास से अब सिफ़र आदमी
दिल पे काबिज़ जहां बेहिसी हो गई

स्नेहलता ‘नीर’