आईना सच का: रकमिश सुल्तानपुरी

ज़ुर्म मेरा हो तो मुझको ही सताया जाए
इश्क़ को बीच में ऐसे न घसीटा जाए

इश्क़ तो पाक है महफ़ूज यहां हर कोई,
दोस्त हो दोस्त को क़ातिल न बताया जाए

सैकड़ों बार मुहब्बत में मिटाया जिसने,
उसको पैग़ाम दे महफ़िल में बुलाया जाए

लोग तो देंगे ही हर हाल सफाई अपनी,
आईना सच का ही लोगों को दिखाया जाए

मुझको है प्यार बहुत सिर्फ़ वहम है उसको,
दिल के जज़्बात से वाक़िब तो कराया जाए

जिसके चेहरे की मुझे याद बहुत आती है
उसके चेहरे सा कोई चाँद बनाया जाए

इश्क़ में आज है इक फ़र्ज बकाया ‘रकमिश’
मिलने आओ तो सही दिल से निभाया जाए

रकमिश सुल्तानपुरी