गली के मोड़ पर: गरिमा गौतम

इंतजार में नजरे जमाए हुए
खड़ी हूं आज भी उसी मुहाने पर
छोड़ गए तुम गली के जिस मोड़ पर

तुम तो चले गए वचनों में बांधकर
मैं ताकती रही गली के छोर तक
आगे बढ़ना चाहा पर रुक गए कदम
किस पल आ ढूढ़ों तुम गली के मोड़ पर

दुनिया आती जाती रही, नज़ारे बदल गए
न जाने कितनी बारिशों में हम भीगते रहे
बीज जो बोया वो पेड़ बन छाया दे गए
मैं तपती रही धूप में तुम बेखबर रहे
अश्क नहीं बहते वो कब के सूख गए
पथराई आंखों से बस राह निहारते रहे

तन्हाई भी मुझसे रूठती सी जा रही
सांसों की डोर भी छिनती है जा रही
मैं तो चली गई नैन खुले ही रह गए
अब भी इंतजार में नजरे जमाए हुए

गरिमा राकेश गौतम
कोटा, राजस्थान