खूबसूरती क्या है भाई
बहुत गहरे में उतरूँ तो
मूलतः एक श्राप ही तो है
कि इस पैमाने पर हम ता-उम्र टाँगे जाते है
हमारी हर कला, जज़्बात,
सपने व प्रतिभा को

हमेशा शक के नज़रिये से ही देखा जाता है
हमारे ख़्वाबों पर
दुनिया भर की पाबंदियां लग जाती है
और एक दिन ऐसा भी आता है
जब हमें खुद अपनी ही खूबसूरती से डर लगता है
घिन्न हो जाती है हमें खुद अपने इस चेहरे से
थूकने तक का दिल नहीं करता

कि हमारा खुद का प्रेम ही हमें बार-बार ठग लेता है
और बस जी भर कर ठगता ही रहता है
यह फिजा भी हमें ही कुसूरवार ठहराती है
सारे इल्ज़ाम हमारे ही माथे पर थोपे जाते है

और फिर इन सब के बावजूद भी
हम हर रोज सुबह अपनी इसी शक्ल को
आईने में देख कर कह उठते हैं
गालिब सच ये दुनिया इसी लायक है कि
हमेशा ठोकरों में रखी जाये
हुं…

स्नेहा किरण
युवा कवयित्री व सामाजिक कार्यकर्ता
अररिया , बिहार