मनभावन बसंत आया ओ सखी: राव शिवराज पाल सिंह

पीत वसन पीत ही चमन
सरस्वती को करके नमन
वंदन तुम्हें लक्ष्मीपति रमन
मनभावन बसंत आया ओ सखी

जब रसाल बौर से है महका
कोयल भी डालों पर चहका
मन भी बहका तन भी दहका
मनभावन बसंत आया ओ सखी

फगुनाई हवा भी मदमस्त हुई
निष्ठुर शीत भी अब पस्त हुई
ललनाएं भी रंग लेकर चुस्त हुई
मनभावन बसंत आया ओ सखी

अंग-अंग भी अब फड़कने लगा
सब का ही जिया धड़कने लगा
खेतों में सोना सा बिखरने लगा
मनभावन बसंत आया ओ सखी

नवोढ़ाओं को भी मीठी सिहरन लगी
प्रीतम को भी हल्की खुमारी चढ़ने लगी
प्रौढ़ाओं को भी तो कुछ यादें सताने लगी
मनभावन बसंत आया ओ सखी

चाह उठने लगी हर श्वसन
काम ज्वर का कैसे हो शमन
तुम ही बता दो रति औ मदन
मनभावन बसंत आया ओ सखी

राव शिवराज पाल सिंह
इनायती, जयपुर 
संपर्क-7728855553