मन का पाखी: प्रार्थना राय

सपनों की उड़ान भर
वास्तविकता की धरा पर

जब भी उड़ता है
मन का पाखी
तो उसे महसूस होती है
थोड़ी सी कमी

प्रीत नई
रीत नई
स्थान नया
भाव नया

किंतु और परंतु के
बाद भी
प्रतिदिन के संघर्ष नए

घर नया
आंगन नया
सपने नए
अपने नए

देहरी से आंगन
तक की यात्रा में

हुकुमता,
कुहकता,
ठहरता,
डूबता

मन का पाखी
न जाने क्यों रसोई
तक आते आते
हो जाता निढाल

कहीं कुछ तो है
जो बाँचा नहीं जा सकता
संबंधों की पोथी में

प्रार्थना राय 
देवरिया, उत्तर प्रदेश