जिसकी मांँ नहीं होती है: प्रार्थना राय

गजब की पीड़ा होती है,
जिसकी माँ नहीं होती है

याद आता है, रात भर मैं सो ना सकी
मांँ के तकिए से लिपट के रोई थी

पहली बार ससुराल से जब मैं मायके आई थी,
मांँ के आंँचल में लिपटकर सिसक सिसक के रोई थी

मांँ की आंखों में पानी भर आया,
जब थपकी देकर सुलाई थी

गजब की पीड़ा होती है,
जिसकी माँ नहीं होती है।

कुछ घबराई, कुछ मुस्काई, मुँह में अपनी बात दबाई
मांँ की कंधे पर सर रखकर बिना कहे दिल की बात बताई थी

मांँ की आंखों में पानी भर आया,
जब बिना कहे सब कुछ जान पाई थी

गजब की पीड़ा होती है,
जिसकी माँ नहीं होती है

कुछ सहमी, कुछ शरमायी, कुछ बिखरी मेरी कहानी थी
तब माँ अपनी गोदी में सर रखकर धीरे-धीरे समझाई थी

मांँ की आंखों में पानी भर आया,
जब भटकी राह पर सीधा डगर दिखाई थी

गजब की पीड़ा होती है,
जिसकी माँ नहीं होती है।

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश